पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६७९

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११३ सरस्वती। [भाग १७ इस दिन के पतम का समिको करना महते। गत्पीक की पन्त में हेम्तो दुर्गति यही na दुस-दायक को दुनी देर कर दुग्गी म दरोगा भी चाहिए, किन्तु पाहिए अप से स्मा। . मोगा पर-मन्त शान्ति पदोगी सग में ; पूम विषंगे वहीं रोकार निस मग में। सपन-पना साप दी पिचताप परने लगा। और यहा से देत मो, हारनप इसे बगा ! ममावत पर प मास्कर पूर्ण माया ! प्योम रसी के मुमग यो से पूर्व तुपा पदा?.. पण्डिस हो मायाम्प निवप ज्यों हो जाता है, ग्मी राय को प्रेम में क्या दिलाता! पा ये तारे ४ रगे एक मम से मिप हो। दात पंमी रो, यो म देश वा सितम पर दिन मषिक दुरित रस्ते आतेभी स्सम में भी साधुमा रिमाते है। वासर-पनि का मारा शीप्राने पाया तो भी सा में बनी सी साला। रह-वरन वे प से रहि करने सगा। । ।. कांप रोष मे पपपि पर गिरने पगा ॥ सदन मन में नहीं रिशता पा सकती है। बामी की क्या हदक्-म्यता मा सस्तो । दित प्रमादिता शन ज्ञानियों में रोता है। निम पुष का प्रमिमान मामियों में है। सुपर सूर्य का पतम पर मुसाहुपा मिसो महीं । पिन कोक पेमा-मति दुपी हुए प्पिं दीaon हाम-बासमा दाम हुमा मो. पम्प गदा, परसता में साप पप गुप प्रेश दी। पर, दुग-गुपया पिमा समप मापे मिबसे ६१मी मिरा में नहीं मान-मन रिखने बोफोरमद शोक में पड़े हुए इस भी। शोपपि पर भीश ममता है कितनी पढ़ी! मियिक रामपा पर दो भाताच मीच मेरपी सेसो माना। . पड़ी पा! मी एप देखने में पायेगा , तमे भूप का वरपर जाम रपयेमा । सम समान वागे, पुष भी एमेगा पहीं। निपर ए को दूसरा प मी मेगा नहीं। भएका अधिकार पापि गता माता है,तो भी इसम पनि माता माता। गिर म्याम में सीरित इंगा निःशमगर मिशेष परिभा माति-परपुरे महित मुग मे भिगा । परिक-शिक्षा-मीरम ममप गमगी मारय-मी.. रामपरित पापार