पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६७४

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संख्या १] हर्ट स्पेम्सर की सेय-मीमांसा। ४०९ (३) वैज्ञनिक तत्वों के फिर पानी के रूप में लाया जा सकता है। वर्षा का अल वही है जो पहले माफ षम फर हमारी हरि की व्यापक नियम । पोट में हो गया था। मामाची सलते सटवे लुप्त हो कास, माकाश, प्रकृति, गति पौर शकि,रे माती है । पर यह अपने परमामुषों के रूप में अक्षय वैधानिक वश्य है। इनका पास्तयिक अस्तित्व (Ital रहती है । यह न समझना चाहिए कि उसका सर्वया Printencs) कैसा है, यह मानमा इमारी युदि के परे माश हो गया है। उसके परमाणु तो पैसे दी धर्तमाम है । इमका प्यायहारिक अस्तित्व (Phenomenal रहते है-ये तो पैसे दी म्यौ के प्यों बने रहते। Existence) सापौर इनकाबान से होता है. उनका रूपान्तर मात्र हो जाता है। रसायन शास यह सष हम पहले ही लिख पाये है। प्रवइम तयासे (Chemistry) के प्रचार से इस सम्बन्ध में मनुष्यों - सम्बन्धरसमेयाले व्यापक नियम का निरूपय सुनिए- का काम बहुत अधिक परिप्स हो गया है। इन पौध तत्यो में से काल पार पाकाश के प्रप से यह नियम असणनीय माना जाता है। विषय में पहले ही लिमा साघुका है। प्रतपय प्रय- MNS इस बात के सिर करने में कि प्रति का माश महों शिष्ट तीन ही तत्त्यों के नियम बताना है। होता, पारम्म में पिना प्रमाण के ही, यह सियास्त मान सेना होगा। क्योंकि प्रकृति को प्रसय सियारने प्रकृति का नियम । के लिए जो प्रमाय दिये जायेंगे हममें यह बात पर किसी भी प्रारतिक घस्तु का प्रभाय नहीं हो ही से मान ली गई है। इन प्रमाथो में से तोलमा सकता, अर्थात् प्रकृति का माश नहीं (Matter is (IVeighing) मुख्य प्रमार ही परम्सु तोसमे के बांट Indestructible)-पापमय है। प्रकृति का रूपा. (Woights) मरुति के पमे हुए है और यदि उनके सर प्रयश्य होता है, परन्तु उसका सर्वथा क्षय एक से रहने में विश्वास न किया जाय तो सोलने अथवा प्रत्यन्तामाष होना प्रसम्मष है। की क्रिया भी घ्पर्पदी सिर हो जाय । यदि प्रकृति के ___प्राचीन काल में मनुष्यों का पिश्वास था कि प्रेश एक से म होते तो तपाने पीर गसाने पर मारुतिक यस्तुयें सर्वथा नए हो जाती हैं। अर्थात् सोना मष्ट हो जाता। परन्तु ऐसा महीं होता । उसका उनका मितान्त प्रमाण हो साता है। उनका यह भी एक भी परमाणु कम महीं होता। इसी तरह रुपयों स्मयाक्ष था िसपि न होती है। उसकी उत्पत्ति की वो लोहे के बांये से होती है और तोल से यह समय समय पर हुमा करती है। विद्याम के प्रचार निश्चय हो जाता है कि स्पयो की संख्या ठीक है। से इस विश्वास का अपलोप-सा हो गया है। पुष्छल ऐसे किसने ही उदाहरण पार भी हैं जिमसे प्रति ताप (Connet) कमी कमी प्राकाश में अकस्मात् की प्रक्षयता सिर होती है। , .. दिखाई देने लगता है। इसका यह प्रर्थ महीं कि उसकी कोई मयीम स्टपि स का पुमर्जम्म सुधा है। गति के नियम । बात यह कि पहले यह छिपा हुआ था, प्रतपय गति के सोम नियम है:- इमारी हरि की पाड़ में था। पर अप पूमते घूमते (१) गति में विपम नहीं है (Motion in Con- यह हमारी हष्टि के सामने पा गया है।जो पानीमाफ tinuous) अर्यात् गति रुकती नहीं ठहरती नहीं। के रूप में होकर हष्टि से लीप हो जाता है, भर्यात् षह निरम्तर होती रहती है। यदि ऐसा नियम म सओ दिखाई नहीं देता, पहचामिक साधनों द्वारा होता तो सवितृ-मण्डरू (Solar System) में नक्षत्रों ।