पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६६८

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संस्पा ६] दर्षर्ट स्पेन्सर की शेय-मीमांसा । ४०५ से बना है। इस लिए प्रानुपर्य-सम्बन्ध प्रसळी है रमती हो और सो सहवर्ता हो । ये सीमायें चाहे और सहयों-सम्बन्ध दूसरे सम्मयों से निकला रेखायें हो चाहे घरातल हो, अब तक सहयों दुमा है।.मानुपूर्य-सम्बन्ध पान-अवस्था के प्रत्येक म होगी तब तक इनकी कल्पना न हो सकेगी। परिवर्तन मै, प्रत्येक प्रेणी में, होता है, परन्तु सह- ये पाकाश-रूप बमाने वाली सीमायें सहयों पा-सम्बन्ध बान-प्रयस्था-भेद में प्रादि से नहीं, सड़ पस्तुयें।इनमें वस्तुत्व कुछ भी महीं, यस्तु क्योंकि अपस्यायें पूर्षापर-कम से होती है। यह का माम-मात्र ही इनमें है। यह कल्पमा घस्तुस्थ- सम्बन्ध रस समय उत्पन्न होता है जब अनुभव रहित सहयों वस्तुओं का सारभूत-रूप है। इसकी करते करते ऐसे पानुपय-सम्बन्ध मालूम हो जाते उत्पत्ति उन अमेक अनुमयों के संभाग से है जोपामावस्था में अपने रानी कारों में एक ही से जो पुरि-विकाश के समय से प्रपतक होते पाये है। हो प्रर्यास् जिनमें मामे पीछे होने वाली घटनायें न इस प्राफाश केशान के लिए सबसे पहले पस्तु हो । जिमम ऐसी घटनायें होघे पानुपर्य सम्पन्ध को स्पर्श करना चाहिए । यह पहला साधन है। है पर जिनमें ऐसी घटमा म होघे सहयों किसी वस्तु के स्पर्श से पो मावों का अनुमम सम्पन्य हैं। मन में प्रतिक्षय जो जो भाष उदय होते होवा है । एक तो उस पस्तु की प्रतिरोषता रहते हैं उनमें दोनों तरह के सम्यन्य रहते हैं। (Resistance) का, दूसरे उसकी मायु-सम्बन्धी अनुमष करते करते दोनों का अन्तर मालूम होने वितति (Inscular tension) का । वस्तु की स्नायु- लगता है और दोमी सम्मम्धी केसार-रूप का बाम हो सम्बम्बिनी पितति प्रति रोपवा के प्रहय करने में जाता है। सहयों-सम्पन्यों के सार-रूप का नाम प्रायश्यक है। प्रमेक प्रकार के स्नायु-सम्पम्बी समा- भाकाश है। मन में प्रानुपर्म्यता पार कार का एक घानों (Muscular Adjustments) मे, जिनमें सा घिन्तम होमा, व्या सहयतिता पार पाफाश विविध प्रकार के सायु-सम्बन्धी प्रसरणों (Muscular का एक सा चिन्वन होमा, इस पास का प्रमाण Teusions) की पावश्यकता पड़ती, अनेक प्रकार नहीं कि काल और प्राकाश युति के पास्तविक के प्रतिरोधक पदार्थों का ज्ञान होता है। अब ऐसी रूप है । इससे तो यही समझा जाता है कि स्थिति वाले पदार्यो का पान दो जिनमें कोई भी अंसे दूसरे व्यापक विचारों के साररूप दूसरी पर्यापर-सम्बन्ध नहीं, सब उन पदार्यों को सहवर्ती विचार-सामग्री से उत्पन होते पैसे ही ये मी समझिए। उत्पन्न होते हैं। प्रम्सर फेषल इतना ही है कि यदि स्मायु-सम्बन्धी समाधानो का संयोग . इसके विषय में अनुभप किया उसी काल से बढ़ती प्रतिरोध करने पाळी पस्तुो से न हो तो रन थली माई है, अर्थात् इनका अनुभव सभी से किया पस्तुओं का माम सा होता है, परन्तु उनकी प्रति- मा सकता है जब से बुद्धि का विकाश हुमा है। रोषता का अनुमय नहीं होता। भर्थात् यह शाम इस सिदान्त का समर्थन व्ययमय-नय से भी होता ऐसी सहयों पस्तुओं का होता है मिमम बस्तुस्प है। हमें प्राकाश का हान होता है यह फेवल सह- कुछ भी नहीं, केषस उनका रूप ही रूप है। ऐसे षों स्थानों ही का शाम है। यदि हम प्राकाश की सामानुभवों के सार-रूप का माम अाकाश है।' कल्पना करना चाहें तो इस तरह कर सकते हैं। यहां यह फस मा भी प्रावश्यक है कि जिन माकाश के किसी स्थान-किसी भाग-को हम अनुमयों के द्वारा भाकाश का माम होता है ये सब .. पसी सीमानों से धेरें जो आपस में विशेष सम्बन्ध शक्ति के ही अनुमष है। स्नायुसम्पग्विनी शनि