पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६०५

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१८ बंकिम निबंधावली–स्योय किम बापू के चुने हुए बैंगला नियों का स्वगा। इसमें धार्मिक, राजनैतिक, मनोरमक और साहित्यक सब प्रकार के नियंध है-जिनसे हिम्दीसंसार मिसन अपरिचित है। बंकिम वार के लेखों की प्रशंसा करने की जरूरत मौ । मूल्य एक रुपया। ___ सीरीज़ के सिया भी हमारे यहाँ की पच्छो अच्छी पुस्तकें निकली हैं। १ व्यापारशिक्षा से पर्यशाल प्रादि प्रापों के सेवक पं. गिरिधर शर्मा ने सिखाई। इसमें म्यापार का महास्य, धन्दा, पंसी, सिक्का,ग, बैंक, बहीखाता, साम, साझा, विज्ञापन, वेजोमनी पीमा, अकात, धनविधा प्रादि पिपयों के पास रपयोगी पाठ है, मिम्हें परफर खोग व्यापार के मपीन और प्राचीन तस्यों को अच्छी तरह समझ सकते हैं। हिन्दी में अपने रंग की यह पहली पुस्तक है। मूर पाठ पाने। २ यवाओं को उपदेश- स पुस्तक में सो अभी अभी युषा हुए है, जो पड़ रहे । यियाद करने वाले हैं, जिनका विषाह हो चुका है, जिनकी पत्नी मा युकी है, जो पिता बनने पामे प्रथया बन चुके हैं उम सब युमकों के लिए बदुत ही अच्छे पो उपदेश दिये गये है। प्रसिय भनुम मेयक विलियम फायेट के एण्यास हयंगमेम' माम की पुस्तक के मापार से यह लिखी गई है। दस पाने । ३ शान्तिवैभव-विलियम जार्ज गाईम की 'मसी माफ कामम्स' का अनुपाद है। कई प्रम्छो पुस्सक है । इसमे इसमे विषय है। शान्ति, उतापली माश का कारन है, असफलता में सफरत. सपारयोग करो, पार्नर का मार्ग पर सुप शान्ति । मूख्य धार माने। ४ लन्दन के पत्र--एक विलायत-प्रवासी भारतवासी के जोशीले देशमणि-पूर्व पीर सप उदय के लिये हुए पत्रों का संग्रह। पढ़ते ही देश भक्ति की बिजली दी जाती है। मान्य तीन पाने । : ५षिद्यार्थी जीवन के उद्देश्यका प्या पिता के उपदेश दिया ठमे मधेरा मितव्ययता, स्पायलम्बन, सफलता पार उसकी साधना के उपाय, विवा उपदेश, प्री का गलने की शिक्षा, परित्र गठन पार मनोबर ये हा पुस्तके माय प्रदेश पार पपर के तमाम सूरी मायरियों पीर इमाम के लिए मं.पूर दो पुके हैं। सीरीज का उमौसषों प्रग्य उमसाल उपरहा है। यह उपन्यास है और देसा-केशरी, मित शिवाजी महाराज एप्रसारयारपरित को लेकर लिया गया है। महाराष्ट्र प्रान्त को स्पाघीम परमे । महारास शियानी समान मुंदेलखाको स्याधीन करने के कारण छत्रसाल को भी मपूर्ण यश मिम पुस्तक पढ़ने याम्प है। हमके सिपा हमारे यहां हिम्दो की पीर पार पार पी पुस्तकें भी मिलती सुपीकर । देगिये।' ' पुस्तक मिटमे का पता- . . , , . हिन्दी-ग्रन्थरलाकर कार्यालय पाग, गिरगांव,