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8 . इंडियन प्रेस, प्रयाग की सर्वोत्तम पुस्तकें

कादम्बरी। स्वर्णलता। यह कविवर नाममट्ट के मर्वोत्तम संकर- रोपक, शिक्षादायक और सामाजिक उपन्याम पन्यास का प्रत्युतम हिन्दी-अनुवाद, प्रसिद्ध दिन्दीप है। अंगशा में इम उपन्यास के १८०८ व १४ संस्करण हो चुके थे। इसी से प्राप इस उपन्यास की देखक स्वर्गवासी पायू गदाधरसिंह पर्मा ने किया है। फलकचा फी यूनिवर्सिटी ने इसको एफ० ए० उपयोगिता का अनुमान कर सकते हैं। मंगला में इस Pास के कोर्स में सम्मिलित कर लिया है। दाम II), उपन्याम की बड़ी प्रविष्ठा है। उपन्याम क्या हम सचिम संसद में) पुस्तक को गृहम्घाम फा मया मया ममझना पादिप । हिन्दी में इसके बाद का प्रमी तक कोई गीताञ्जलि। उपन्याम नहीं निफरहा । ३९१ प्रष्ठ की मारी पोपी मूल्य १ रुपया। का दाम केवल १० सवा रुपया। माधवीकंकण ।। डार भी रवीन्द्रनाम ठाकुर की बनाई ___मिस्टर पार०सी० दत्त लिगि' 'माधान "गीता अलि" नामक अंगरजी पुस्तक का संमार में पदा मारी मादर है; उम पुस्तक की अनेक कषिपायें। पमा रोपफ पड़ा शिणादायक और पड़ा मनारम्जफ पंगला गोवालि में क्या पार मी कई मंगला की है। यह उसी का दिन्दी-अनुपादाएदय-हारिधी पटनामों मे भरपूर है। पीर पार करया भादि प्रक पुस्तकों में छपी हुई हैं। उन्हीं कवितामों को इफट्ठा रसों का ममारा इसमें किया गया है। पमन्याम का करके हमने हिन्दी-प्रचरी में गांवाचलि' पाया उमंग पवित्र और शिशादायक है। मून्य 1) है। जो मादागय हिन्दी मानते हुए पंग-मापा-माधुर्य मुकुट । का रमास्वादन करना चाहते है उनके लिए यह मई काम की पुना है। पर पंगला कं प्रमिर मेगा प्रारपात पापू के बंगला उपन्याम फा हिन्दी अनुवाद है। माई मा विचित्रवधृरहस्य । में परस्पर पनपन होने का परिणाम अन्न में पंगला के प्रमिय सेगक श्रीरवीन्द्रनाय ठाकर क्या होता है। पदी इस दाटे में उपन्याम में दी मिरिस्व "पटाकुरानीर हाट" नामक मंगला उप विसरावा के साथ दिगनाया गया। मे पार भ्याम का यह हिन्दी अनुपाट पिपिपरहस्य लोग परने मन की वैमनम्प के रोग मेरपा मक नाम में सैयार हो गया उपन्याम फितना गपस मून्य !) पार मान । मकी पटनायें सिवनी महाप , पन्याम उपदेश-कुसुम । का भाव मा उत्तम, पाटकों पर इसकी फया पर गुलिना माठ बाप का दिली. भामा प्रभार पदया। प्यादि वें उपन्यास मनुवाद६ । पर पाने माप पर गि- पाटको म्प रिदिन जागी । मून्य my दापक है । मूस) पुस्तक विमनं सपा-मेनेजर, इंडियन प्रेस, प्रयाग ।