संक्या ४ ] . हिन्दी का काम श्रेन सैमालेगा! २३९ पाप दुनिया को पुरा भला कहते हुए किसी मदरसे के.........मे संस्कत का कोर्स ऐसा मुशकिल कर में मास्टरी मिस जाय, इसके लिए प्रयक्ष करने मगे। दिया है कि उसका ठिकाना नहीं। माई! मेरी (३) हालत में ही आमता है कि कैसे गुजर होती है। पासमाम की पोर दुलतियां मारने वाले वायू कोई मुझे नौकरी नहीं देता। तीस सीस चालीस साहय अय सय मदरसे में मास्टरी के लिए जाते चालीस रुपये पर पी० ए० मारे मारे फिरते है। ६। पर-हमको कानून पढ़ने पाला प्रेन्युएट न फिर मला मुझे कान जगह देगा! आप यहाँ के चाहिए यही टका-सा जवाष पाते हैं। उदास पुराने एंस है। इस यक मुटो पार कुछ नहीं तो होकर लोट पाते हैं पार ईश्वर को, पुरा मला एक गरी प्रसनबी दी समझ कर मेरी मंदर कहने के पहाने, याद फरमाते हैं। जिन विद्यार्थियो कीजिए पार मुझे कोई नाकरी दिला दीजिप । से ये घणा किया करते थे उनमें से कर एक पल० पयोकि ऐसा होने मे में मारपेट मार पर पी० ए० टी० देकर मदरसे में काम कर रहे थे। ये उनमें से का इम्तिहान दे सकेगा"। कई एक के पास गये मार कहा-"भाई, तुम्हारे किसी को किसी के घर की दशा' का क्या स्फूल में अगर कोई जगह स्याली दो तो हमारे लिए पता। इसी से दीनदयाल ने काशसंकिशोर से यह देर मास्टर से कह सुम दो । महरवामी होगी"। प्रार्थमा की। लम्पी सांस टेकर फैशलफिशोर मे कहने मुनने पर ऊपर से तो उन्होंने बहुत कुछ एक बार माफाश की पोर देखा-सातो पा मरोसा दिलाया, पर कदा सुना कुछ नहीं। मला घुपचाप इनके सह लगा फिरता है पर पीछा नहीं इन्होंने कप किसके साथ प्रयम सलूक किया था छोड़ता। मामा मुसीयत में इनकी हंसी उड़ाता है। यो इनके साथ कोई करता। ऐसे ही एक राज उन्होंने कहा-"मुझे अफ़सोस है कि मैं पापसी निराश-भाय धारण किये, गरदम स्टपाये, ईरामो मदा-क्योंकि मैंने भी कुछ इसी पि.स्म का भगल पार परेशानी को अपने सर लगाये ये अपने घर बैठे पिठापे-पयोंकि पासी पेटे रहने से कुछ न कुछ टाट दिये किसाक भीतर से आती हईरेस करना ही प्रम"। की घरघडाइट सुन कर पाई हो गये पार पिना इमकी वाती के रंग से, पार सयस अधिक किसी सास इरादे के पी ही दिल पहलाने को इनके मफ़सर पर सेस का दाग लगा हुमा देशकर, उसकी पर देखने लगे। इतने में किमी मे पीछे से दीमदयाल समझ गया कि काशलपि.सार अय पद इनके कन्धे पर हाथ रपमा। देखा तो पदी- काशसकिशोर महों । उसने पंदा-"यदों के मिशन "मफ़लर गमे सगाया"-याला पुराना सहपाठी स्कूल में मुना है कि एक जगह साली है"। यह कह दीनदयाल है, जिससे पापने, जय प्राप पी० ए० मै कर उसमे गौर से शारिशोर की मार देगा। थे, तमी से पालमा जोड़ दिया था। ये इसी विचार उसे ऐसा करते देस, इस घर से कि कहीं उसे मेरी में ये कि इससे पास या महीं, कि उसने कहा- यथार्प दशा का मान न हो जाय, शारिशोर "पाप मुझसे फायरे सफा रहते हैं। उस समय मकपका गये पार जल्दी जल्दी पोरे-"मुमे दिली । सो पुण् मुझसे गलती दी गई उसे माफ कीजिए। अफसोस है, पुरानी माती की भूल गाइप मुझे पयोंकि पर मेरी पह हालत महीं है। केपल संसात उनका भव कुछ गपाल मदी। पादरी साहब से दी की बात में दो साल पी.ए. में प्रेस दुपा। मेरी जरा भी जान पहचाम मही"। यह कद पर , यह तो पाप जानते ही हैं। क्या कई, यिभ्ययिपालय शकिशोर मे मीधी निगाह कर ही । मामा म
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