पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/३२४

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संख्या ३] विज्ञान की महचा। संस्कव-भाषा है। राजनीतिक महत्व के कारण उ: की सा और इदि यहीं सम्ती। दूसरी बात के बहुत से शम्द और धार्मिक महप के कारण कि जीवात्मा को शाबर मे पचेला प्रास करनी चाहिए। ससत्त के बहुत से शपठेठ हिन्दी शब्दों को मकाल से अपना १६ गार बाती को पेना भी चाहिए- कर उनकी जगह पर मा गये हैं । विदेशियों के पर्यात् जीवामा को इस बातें सो पार से बेनी चाहिए और कुछ अपने पास से बाहर पात्रों को देनी चाहिए । इसी संसर्ग से भी यही पाप पैदा होती हैमुसल्मानी खेनन के मम पर उसका पमित अवम्बित गता। और अंगरेजों की मापा से हमने किसने शप्प ग्रहण, " पर कम किया कि पिर मर नहीं। फिर वो बीवन का कर लिये है, यह इस पात का प्रमाण है। प्रतएप मन्ती सममिए । हमारी मापा के ओ मातं से शब्द प्रबलित . वही पणा किसी देश के निवासिपी की बुमि की ग्रार स्ट्रा दो गये है, इसका कारण दूदा जाय ता भीरमादेश अपने पोती देणे से सम्बाप मी पता, ऊपर लिखे गये कार में से एक एक अवश्य सोमन-देन का म्पबहार मी करता, प्रतएव मो होगा। सभा कीमा अपना हाप और अपनी मनोवृत्ति मापा की परिषसम-शीनता के सम्बन्ध में पीर मीनतारे म्सकी पुदि का दास हुए बिना नहीं भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है। किन्तु खेम द हता। इसी तापादेशस गिर सता रेमो बाहरी माने के टर से इसे हम यही समाप्त करते है। बातें प्राय तो करता है, पर हर बार को अपनी निय जनाईन मह की बातें नहीं देता। मारतवर्ष मी एक है। प्रतएव पही मिपम इस विज्ञान की महत्ता। पर भी परिह देता है। पर्यात् मारव को भी कप पाते बाहर बाग को-अम्य देणे कोनी चाहिए। अब, to पानी को पानी में हिन्दू-क- सोचिए कि भारत यह काम किस प्रकार कर सकता है और विधाबप की मींव शहने का मसब पर नवीन विचनियाबप इस सम्माप में इसकी लिखमी पड़ी धूमधाम से मा। इस अवसर मरद दे सकता है। पर देश पापात तमीम मा पर कर देगी और विदेशी विद्वानी के बाया दुनिया के प्रतिषित देशों में गिना बाप महसमके याम्मान एए । विज्ञापाचर्य अपडी- गुबजे महा बापपहगई जान-पान देने पाप हो पत्र बमु मादप मी एक पाक्यार देमे की हा साप 1 पा इस पोम्प नमी दो समतामा भारतीय पात्र की। मापके नाम से शिधित भारतवामी मनमाम नल। इतना अधिक ज्ञान-सम्मान में किये मार बामे प्रापकी कार्ति-पास मारत ही में नहीं, विदेशों में मी पारा दो सिता सना शान कमा सकें। इसरिया । सी है। पाप म्याम्पान का पिप शुत गहन पा। विद्यालय द्वारा निभवती ऐसे पारपार हो सकते हैं। सपापि भारने सका चिन सर सममने पम्प सर पर विविधासप चाहे तो भारत पे अपना गत गौरव मापा मैं किण । पाप कथन का मतप नीचे दिपा मम्स करा सकता है। क्योंकि शाम किसी अति-विशेष की बपौती नहीं। किमी पेश-पिरोप केही बोगो के हिस्से में मीन का विस-म 'चमत्कारों से भरा है। पानी पर। सारे देश परस्पर एक दूसरे पर भवम्बित मचो की विरापतामी पर ध्यान देने में मास । प्रात् भरपेट देय अभ्य देशो में अपर प्राय की बात शात ती पाणी पात तो पाकिसमार पाता किमी न किमी रा में दूसरे का भरप मे मो भनेक पटिया विद्यमान साय जीवात्मा का प्रणी। विज्ञान ताजिए । बम पदिम सलों पसम्पाविना रोज-रोश पहिए। इसबा जीवन पीश्री सम्पत्ति है, पूर्व पार्थो ही की।परिचम