पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२७२

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संम्या ३] तैमरस मारह विधान। १५.. मा भै जन पबिन्न मागायों से समता प्राप्त की। की सुधना मेगा दिये । पदि समाचास्स क की सूचना पीने और दुनियों को मैन प्रेमी से रेखा। मैंने कमी मुमे असत्य प्रतीत हुई तो मैंने उसे पग दिया । इसी प्रकार सतापा भार कमी गहें अपनी पा से दधित अधिवासियो, सेना और सूपेदारों की निरंपता और सप । मैंने अपने स्वर में पूर्ण और अभ्यायियों को भी समाचार की कोई पात पदि मेरे कानों तक पची तो मैने प्रबिएमी दराने रिया । मैंने रसकी स्वार के प्रमुसार कभी उने सदाब दिया। काम नहीं किया और न दूसरे विस ग्मकी धमवासियों रस-किसी भी मासि या फिर बोग मदि मेरे ही की और काम बगाये। पास पाते तो मैं सम सरदारों को पावर और सम्मान भाठा-मैंने सर्वदा ही मिभयपूर्वक कार्य किया । साप पुखाता, पिठाता और रम प्रमुपापियों का भारर मिस कार्य को मंग करना चाहा, तन मन से उसी में मग समापनमार करता । भले प्रायमियो साप मम गया । साप ही बता से समाप्त नबबिया, नवा सदा मशाई की और दुरीको ग्मकी पुराई से कुमपा । मिस इससे पाप मनी ।यो मन का बही किया। मैं किसी ने मेरी भक्ति की ममे रसके गुण कमी म भुखापे । कठोरता से किसी के साप पेशही प्राया और म भरने मैंने उसका प्रतिपा से अश्य प्रदान किया । मो मेरा पत्र कार्यों की मिदि के लिए कमी कोई भम्याप ही किया। पापौर रानता बासित म मेरे पैरों पर प्रा यासपिए कि सर्वशक्तिमान् पाममा मेरे ही प्रति करवा गिरा सी बता मैन मुना दी, और सदारता सपा पा. का म्पपपार करने पगे और मेरे ही कार्य मुफे दुखदायी हा से से अपना लिया। मरोगा। पादम सम्म से मेकर सरव मुहम्मद के समय तक एक फिका सरदार, पोर पहराम माम का, मेरा मौका के रायी पमापे मनूनों और विधान के सम्बन्ध में या । पुरके समय ग्सने मेरे साम दगा की। पद या से मग विद्वानों से भारत पक्षपाहीचौर पक प क बा मिला। उसने मेरे विरुष तखबार मी ठाई। परन्छ ग्मकी सम्मतिया, काभर विचारों को मी अंधा। मरे भन्त में मेरे नमक में काम किया और या फिर मेरे चरणों सातौ धीर सुविधाम से मैंने अपने लिए प्रसग मार्ग पर मा गिरा । मेरे सामने पाकर सने दीनता प्रकट की। पापा । रामको तिनायकारयों मैंने अनुमपी, बीर, बश-सम्भूत होने के कारण मैंने उसकी मिकाबा पीर रस या सर्वाचा हा बिमकी दीखत पुराइयों की ओर से अपनी दि फेर बी । ग्से रथ पर पर राज्याधिक बिनायता मिर्षयता पर अत्याचार प्रतिहित किया और उसकी वीरता के विचार से इसके राम से प्रसग ही रहना मैन सीमा।योंकिही से शमश बोहारण केभिएमन से पमा-प्रदाप की। हवा धीर भाव तपा महामारी के पदी प्रवर्तक । ___म्पारावी-अपने वाहनों, रिश्तेवारी, साथियों, पड़ो. -मुझे अपनी प्रथा की स्थिति मासम थी। रनमें सिपो और ऐसे दी प्रम्य पोगों को, जिनसे मेरा कुछ भी बा मग म भावमी पे मैं अपने भासस सम्बम्म पा, मन अपने सीमाम्प भार प्रतापदिय में समम्म धार को दीम मरे अपने दो सपण। #न प्रतिष्ठा प्रदान की। इसके साप मैंने पैसा ही परवान किया सार्म प्रत्येक मगर श्रीरघोसमावरच असा गचित पापिने ट्रम्प के साप भी मैंन सा दया की नामपरी मास की। सादा, पमीरों और नागरिमें इता का सवाब किया । गमें मारने या बेडी-रफी से साप एम स्वापित की। मन रमलो पर सीने सामने की पाहाये मन कमीमतें। शासक निफ्त किपा मोइनके रंग, सामान और इसका मैंने प्रत्येक मनु साप सकी पोम्पता के भनुसार • बायकार पा । प्रस्पेड प्रान्त की रण मुम से विपीन ही पाताब किया । मैंने मुम्बधेपम्मेग भी लिया और विपति । रही। मैव प्रात्येक रम्य में सममि समाचार-सा विपुक भी मेसी । झाम भार अनुमय भी बहुत प्राप्त किया। अपने । किम नागौर शिवामियो काम मिचों OR शयिोनो के साप मैंने सदादिमानी धार और भाभयों की पर प्रत्येक रात में होने पासो मानों शराईका परताव किया।