पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२०४

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संभ्या २] हर्ट स्पेन्सर की प्रय-मीमांसा। १२१ तो इस मानने का यह अर्थ होगा कि कोई प्राकाश पार काल केयल पुरि के विकार है। इस त्यतन्त्र पस्सुये है। सध थे पस्तुयें मान ली गई मत में ये दोष है- तप उनका रूप भी होना चाहिए । परन्तु उनका यदि पाकाश पार फाल मन के भीतर ही है कई रूप दिसाई महीं देता, पार मध्यान ही में तो मन के बाहर उनकी पृथक स्थिति नहीं- पा सकता है। जैसे वृक्ष, पर्वत प्रादि के रूप का अर्थात् सांसारिक प्राति से उनका कोई सम्बन्ध स्पर चित्र मन में बन आता पैसे उनके म्प का नहीं, सम्यन्ध केयल पास्मा से है। पर ऐसी कम्पमा पान नहीं होता । जप किसी घस्तु का विचार किया करना असम्भय है । कान्ट का कथन है कि प्राकाश जाता है पर यह विचार उस पस्तु के गुण के पार काल का मान पहले ही से मन में चला माता मारा ही होता है । गुणों के कारण ही एक वस्तु है, मार यह मान इतना हद है कि किसी तरह हट दूसरी से मिन कही जाती है। तो माफाश पार दी महों सक्सा । यदि इस शान को हम हटा महीं काल के गुण क्या है। ग्राफाश में ठम्याई-चौड़ाई सकते तो ये दोनों चीजे मन के बाहर प्रयदय ही है-अर्यात् यह पिस्तारमय है। यही उसका लक्षण उपस्थित इंगिी । क्योकि मन के भीतर से इनका हुमा । प्रकाश में सिया विस्तार के पार कोई चीज़ ज्ञान हट ही महीं सकता। ही नहीं। मसलम यह कि विस्तार पार पाकाश इस विषय के विचार को प्रप. और भागे एक ही षस्तु है । इसका यह अर्थ दुमा कि पिशेप्य बढ़ाए। यह प्रत्यक्ष मालूम होता है कि ग्राफाश पर विशेषण एक दी चीज है। काल फा भी यही पार काल मन में नहीं, किम्मु मन के बाहर है, हाल है। उसका विचार करने पर भी यही निष्कर्ष पार ऐसे स्वतन्त्र रूप पाले है कि यदि मन का नाश निकलता है। संसार की जितनी घस्सये है सभी हो माय तो भी ये पर्वमान रहेंगे। यदि हम प्रात्मा परिमिस (Linuitel), अर्थात् सीमास,है। परन्तु को विशेप्य पार पाकाश को विशेषण मानें, तो मायश पार काळ के विपय में म तो हम यह फह यह भी नहीं हो सकता। कान्ट के कथनानुसार सकते हैं कि इनकी कोई सीमा पार म यह कि प्रकाश पार काल पुरि के विकार है। यदि ये इनकी कोई सीमा नहीं है । जो प्रकाश पार काम बुद्धि के विकार है तो पुरि इनका चिन्तन क्यों नहीं अपरिमिस पार सीमारहित है उसकी कोई फरपमा कर सकती ! यह इन्हें ग्रहण करने में असमर्थ मम के शयनहीं सकती। हम यह कल्पना भी फ्यों है? यह सम्भय है कि कोई पस्त रिका मही कर सकते कि हम दोनों के विभाग हो सकसे यिकार भी हो पीर उसका उपादान कारण भी हो। है। इस लिए प्राकाश पार काल का पान न तो यदि पाकाश पार काळ पेय पदार्थ हैं तो ये पान यस्तु के रूप में हो सकता है, न पस्त के विशेषण- के रूप कैसे हो सकते है। यदि कार के द्वारा मन रूप में हो सकता है, पर न अयस्त के रूप ही में की कल्पनायें हाप्ती tतो खा भाकाश पार काल सकता है। पाकाश पार काल का ज्ञान तो महाँ के यिमा कम्पमा करेंगे तब यह कल्पना विना किसी हो सकता, तथापि यह मानना ही पड़ता है कि धन के हगी । अर्थात् माकाश पार काल ६प्रवश्य। का पायन उसमे म होगा। परन्तु यह बात नहीं दूसरा मत यह है कि भाकाश और काल केयळ सकती। बिना प्राकाश पार काल के मम द्वारा ममाकसित है। उनकी प्रथक कोई सहा महीं। कोई कल्पना हा हो नहीं सकती। सिद्धान्त यह कान्ट (KHnt) मामक विज्ञानवेचा मे लिखा है कि निकला कि प्रकाश पार काल ऐसी वस्तुयें है