पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१८८

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स्या २] देहरादून। गरमी में पेश की पूनी रमी, इसका माम "रेरादून" पड़ा। धीरे धीरे "रेरा" जोग ही में पास स्तिनों का पगा। शम्य का अपश "देहरा" हो गया। कुछ लोग क्या दुमा पर से किनारे हो गये, यह भी कहते है कि गुरू रामराय मे यहां अपनी कम मतमप से किनारा र समय "देह" स्यागी थी, इसलिए इसका माम देहरादून है पवाती पीर की गरम मपी , पड़ गया। सती की मी चिता करती पी। हैपदी पुन मादरी से भी भी, पहले यह नगर एक छोटा सा गांय था। र मतक्षय की मही किसने सही प्रास परन्तु फर्यापुर प्रादि कई गायक मिल जाने से प्रय जाति के हित की समी ताने सुनी, इसकी स्टा पीर दी हो गई है । प्रघ यह सम्मा रेश हित मी सिपे सब राग मुन । शहर हो गया है । बड़ा पाझार, दिलराम का मोति की गिरविकानी पड़ी, पाज़ार, कर्णपुर, सळनयाला, घोण्याला, मान- पर में सब में मिमी मताप की पुन सिंदघाला, घामयाला, मया मगर, पल्टन बाजार, ग भावाप्प स देखा गया , फालतू सैन, मुघल्ला झा, पीपरमी, हाथी रहवेंसी दया की देखी । पाकला, नुनिया मुल्ला, मो मम्परी, पुरानी पल्टन सापुता के पेट की बातें सुमी, पार प्रन्याहा मुहल्ला प्रावि बड़े बड़े बाजार और मत्तयों को सापकर सप वीं ||ru मुहल्ले देहरादून में हैं। मगर के पूर्व-पश्चिम लिए- पन रसके रोस पर सम्म माही, मना पार पिदाला भाम की दो मदियाँ बहती है। कम मुमतामही गसकी कही। शहर दोमो ममियों के मध्य में है । पिदाला के सभा , सपकास, सारे काम में , दाहिने तट पर चाव-बाग पार इम्पोरियल फारेस्ट मस्सयो की पोचती तूती सी ॥ रीसर्च इन्स्टीटयूट पार काळेस हैं। चौद-याग में पपोप्मासिसाप्पाय एक पड़ी सुन्दर पार पालीशान इमारत बनी है। बाग़ सपन पुलों से सुमित है । उसी के देहरादून। भीतर जालात का कालेज है । धक्ति पान्य के भम को पल भर में दूर करमे याला अन्य स्थान यहाँ हरादून नाम सुन कर प्रम्पेक पाठफ पर नहीं । मङ्गली पस्तुओं का प्रयायपघर पर

चित्त में यह बात पैदा हो बालात का कालेज भी बात उमदा है और प्रपणे सकती है कि इसका नाम देहरा- स्थान पर यना एमआ है। दून फ्यों ? इस विपय में मत-मेव प्रजायबघर धीर कालेज का भयम दो-मस्जिला है। कुछ लोग तो यह कहते हैं है। नीचे के माग में अल्ती पस्सु का समय है कि यहां द्रोणाचार्य मे पहाड़ के पार ऊपर के भाग में सब प्रकार की एकदियों के च में तपस्या की थी। इस कारण इसका नाम ममने रखले हुए है। इसी के एक हिस्से में कई इपन पड़ा । "न" का अर्थ पहादी भाषा में प्रकार के पसियों की ऊपरी थमी से मदे हुए पाटी" है। कुछ लोग कहते हैं कि सिक्योके गुरु ममने भी असमारियों में रखए है । मैंटाल सर्प, मरायची पम्साब से पाकर यहाँ रहे थे। उन्होंने जिसको हम लोग प्रायः प्रमगर कहते हैं, यहाँ यात त"दून" के बीच में रेरा मगाया था। प्रतएष, जगह घेरे हुए है। इसे देखते ही मनुप्य के मानस MAMITImun,