पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१६६

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स्या २] सूर्पयर्मा का शिलालेख । [16साम्पितं स्मृतिमुवाकान्तारारिपती(10)[0] शिषस्तुति है। इसके याद राजा प्रत्यपति से मुभर- नया तापदकारभारममयं स्पर्फ परापाप्रपं पंश की उत्पत्ति लिपी। अनन्तर दोस्लोकों में सावितकारि पस्प बसतात पुर्वधमा [14] प्रसिद्ध राजा हरियर्मा का वर्णन है। युग में जलती नम्पा शत्रुभुषा कचामपारेराप्रम [1] याचना दुई पाग सहा उसका मुख देख कर शत्रु भयमीत हप भुमेन विपुल रसियाति:कवासहिमा [1] होते थे। इसी से इसका नाम स्थालामुख पाया। -ता मम्मपिनेव कामितपिपा गारं मिपीप्योरसा __उसका पुत्र प्रादित्यवर्मा हुआ। उसके यम से उठी येणाम्यमनुप्पसमपर भावं परिस्यामिता (12) ॥ [14] धूममाला को मेघ समझ कर मयूर कुकने लगते मानताप्रतिहता [२०] मृगपागतेन राय (१३) मम्पभियो थे। उसका पुष इयरया हुमा । ८,९,१० लोको भान विशीपम् |1. पासमुप्रतमहारिक्षयामम्मे पेमेश्वरप्रयितनामराया । में उसका धर्यन है। उसका पुत्र शिामया हुमा । स . ११-१६ श्लोफे में उसी की प्रशस्ति है। उसने हजार कारणातिरिक्तंषु परसु शातित(२.पिदिपि [] हापीयाले पौधाधिपति को जीता, (म) लिको के तेषु सरह ११पत्यो मुकः प्रीणामसमयिक [२१] दस हमार घोड़ो का परामद किया और अपने मिकायेमुपादा नवगबमा प्रास्तबमा राज्य-विस्तार के लिए समुद्र के प्राधय से रहने- त्वम्यागविताने स्फुरसुरुवडिता साम्बधीर सम्त[]) पाले गाड़े की समुद्र-सट जाने के लिए विवश तापावास्ति मीपाप्रपामुमचपानप्रमों [२१] तुमाना- किया । जब उसकी सेना चस्वी थी तप उससे रही तस्मिन्मुच्यम्युमेपपुति मबममयो निमित खपाप [२१] दुई घूळ से सूर्य क जाता था और समय का मारशाम्तो पुत्रेण गाराष्ट्र (1,बासिना [1] बान केपल घण्टों की भ्यान से होता था। कलियुग मुरागापूर्वेप (११)कारि रविशन्तिमा [२३] की शौक से रसातल को जाती हुई पथ्यी उसी ने को मितिवर्मपा [1] 1. अपने गुणों से थाम ली । रसका पुन सूर्यधा ___ यह शिलालेग मुभर-यशी सूर्यपधा का है। दुपा । श्लोक नं० १७,१८,१९ में उसी का वर्णन है। डेस के प्रथम दो एलोफ मालासरयरूप हैं। उनमें - इसी सूर्णया ने एक बार शिकार को माते समय (४)ती-पीड़ा ले में। एक सुन्दर शियमन्दिर गिरामा देख कर उसका (14) परियामिता - म पिसर्ग पोवमे में भूव दुई सी जीर्णोद्धार किया । उस समय शत्रु का नाश गम पड़ती है। पवन से भी भर्ष मक करके शिामषा राम्य कर रहा था। १११ साल ruart, पर इस पणा में प्रथम पर 'लक्ष्मी' में, पर्ष के प्रारम्म में, मन्दिर बनाया गया। इस पापारिप । वापि वा स्युक्त पकार इतना प्रशस्तिका कवि गर्गरा-कट-पासी कुमारशान्ति का साफ किसके लिए नीचे की पति में मार पुत्र रविशान्ति था पार सोदनेवाला मिहिरयर्मा भी छोड़नी पड़ी। था। ठेस का यही सार है। (११) पाप - मेट। (१०) सासितविलिपि - शातितनिशिर मात् बिपने शत्रु अब इस लेख से इतिहास में किस नई बात मारा किया हो। इस सप्तमी का सम्बन्ध प्रगान का पता चलता है, यह देखना चाहिए ।राकर फ्लीट के गुप्त शिलालेखों में ७ नम्बर पर, पासीरगढ़ में (११) परार-पा नगर गारा अर्थात् मारा नदी के .. मिठीई एक मुहर पर लदे हुए एक सेब की सपा रोगा। प्रतिकृति है । वह मुहर मौसरी पसाप की है। (११) पं - मतिः । पहशामया के पुष शर्षवर्मा की है। उसमें .