सच्ची वीरता गरजकर ऐसे ही चले जाते हैं, परंतु बरसनेवाले बादल जरा देर में बारह इंच तक बरस जाते हैं। कायर पुरुष कहते हैं-"आगे बढ़े चलो ।” वीर कहते हैं--"पीछे हटे चलो।" कायर कहते हैं-"उठात्रो तलवार ।” वीर कहते हैं- "सिर आगे करो।" वीर का जीवन तो प्रकृति ने अपनी शक्तियों को एकत्र संचय ( Conserve ) करने को बनाया है। सम्भव है कि और पदार्थ उसने अपनी शक्तियों को (Dessipate) फिजूल खो देने के लिए बनाये हो । मगर वोर पुरुष का शरीर कुदरत की कुल ताकतों का समूह (Conservation ) है। कुदरत का यह मरकज हिल नहीं सकता। सूर्य का चक्कर हिल जाय तो कोई बात नहीं परंतु वीर के दिल में जो दैवी केंद्र ( Divine Centre ) है वह अचल है । कुदरत के और पदार्थों की पालिसी चाहे आगे बढ़ने की हो, अर्थात् अपने बल को नष्ट करने की हो, मगर वीरों की पालिसी बल को हर तरह इकट्ठा करने और बढ़ाने की होती है । वीर तो अपने अंदर ही 'मार्च करते हैं। क्योंकि हृदयाकाश के केंद्र में खड़े होकर वे कुल संसार को हिला सकते हैं। बेचारी मरियम का लाड़ला, खूबसूरत जवान, में मतवाला और अपने आपको शाहंशाह हकीकी कहनेवाला ईसा मसीह क्या उस समय कमजोर मालूम होता है जब भारी सलीब उठाकर कभी गिरता, कभी जख्मी होता और कभी बेहोश हो जाता है ? कोई पत्थर मारता है, कोई ढेला मारता है । कोई थूकता है, मगर उस मर्द का दिल नहीं हिलता । कोई क्षुद्रहृदय और कायर होता तो अपनी बादशाहत के बल की गुत्थियाँ खोल देता; अपनी ताकत को जायल कर देता; और संभव है कि एक निगाह से उस सल्तनत के तख्ते को उलट देता और मुसीबत को टाल देता, परंतु जिसको हम मुसीबत जानते हैं उसको वह मखौल समझता था । "सूली मुझे है सेज पिया की, अपने मद
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