निबन्धकार एवं कवि पूर्णसिंह पूर्णसिंह जब भाषण देते थे तब श्रोता इतने मुग्ध होकर सुनने लगते थे कि चारों ओर सन्नाटा छा जाता था और कहीं सुई के गिरने तक की आवाज नहीं आती थी। स्वयं भी बड़े जोश और मस्ती के साथ बोलते थे, जिसमें बड़ी अनोखी-अनोखी बातें इनके कंठ से निकल जाती थीं। यही हाल इनके लिखने का था । जब लिखने लगते थे तब प्रायः एक बैठक में ही बैठकर सब लिख डालते थे । या लगातार लिखते रह जाते थे। पंजाबी के चरखों के गीत' (तिझया दीयाँ सहियाँ) का अनुवाद इन्होंने अंग्रेजी में 'सिस्टर्स ऑव दी स्पिनिंग ह्वील' नाम से किया है, इस रचना को इन्होंने तीन दिन और तीन रात में लगा- तार बैठकर लिखा था। इनके कविता-पाठ में और भी अधिक मनमोहक वातावरण उपस्थित हो जाता था। जब ये ईश्वर को सम्बोधन करके लिखी हुई अपनी कवितायें पढ़ते थे तब प्रेम में इनकी आँखों से आँसू की बूंदें ढुलकने लगती थीं, ये आत्मज्ञान में विभोर हो जाते थे और चेहरा चमक उठता था । इनके अद्भुत व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए प्रसिद्ध इतिहासज्ञ डा० काशीप्रसाद जायसवाल ने, जो इनके साथ रहे थे, लिखा है- "वेदान्ती पूर्णसिंह का विचित्र व्यक्तित्व था। मैंने पहले पहल उनसे उसी रूप में परिचय प्राप्त किया। एक निर्दोष, इकहरा शरीर, साफ छटी हुई मूछ-दाढ़ी, शान्त और असाधारण सौन्दर्यपूर्ण दिव्य मुखमंडल था, जिस पर योग की ज्योति जग मगाया करती थी। नवयुवक पूर्ण की वाणी में बिजली भरी थी । जब वे बात करते थे तो सब को वश में कर लेते थे। xxx वे अपने अन्तर में ही परब्रह्म को पाने का यत्न करते रहते थे । जो कोई भी पूर्णसिंह की बातें सुनता था, यह भूल जाता था कि पूर्णसिंह नवयुवक हैं, उसे ऐसा ज्ञात होता था, मानो कोई गुरु बात , अठारह
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