निबन्धकार एवं कवि पूर्णसिंह इसका चित्रण इनके मित्र तथा स्वामी रामतीर्थ के शिष्य स्वामी नारायणानन्द ने 'दि स्टोरी ऑव स्वामी राम' की भूमिका में बड़े सुन्दर ढंग से किया है-"जब १६३० में उनकी भेंट मुझसे लखनऊ में हुई तो वे नौकरी की तलाश में घूम रहे थे । वास्तव में वे इस गार्हस्थ्य जीवन से ऊब गये थे और फिर उसमें जाने की इच्छा नहीं थी । सच बात तो यह है कि वे सांसारिक और गार्हस्थ्य जीवन के बन्धन से बिल्कुल थक गये थे ।" वैसे तो कई वर्ष से पूर्णसिंह गठिया से पीड़ित थे और वह रोग दिनों दिन बढ़ता जा रहा था किन्तु संवत् १९८७ में संयोग-वश एक मित्र के साहचर्य से इन्हें राजयक्ष्मा का रोग हो गया । उसका कारण था, पूर्णसिंह जी किसी से कोई अलगाव नहीं रखते थे और सबको भाई साहब कहकर गले लगाकर मिलते थे। ऐसे ही राजयक्ष्मा के रोगी एक मित्र के सहवास से इन्हें भी वह रोग हो गया । जिन दिनों ये नौकरी खोज रहे थे, इनकी हालत उस रोग से दिनों दिन गिरती जा रही थी, अार्थिक संकट में रोग का उपचार भी ठीक ढंग से नहीं हो सकता था। सरदार पूर्णसिंह, इनकी माता तो संवत् मृत्यु से छह मास पूर्व पन्द्रह
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