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३०४. पत्र: मणिलाल गांधीको[१]

[लन्दन][२]
अक्तूबर १२, १९०९

चि॰ मणिलाल,

तुम श्री वेस्ट और दूसरे लोगोंकी जो सेवा-शुश्रूषा कर रहे हो, वह तुम्हारी सबसे अच्छी पढ़ाई है। जो व्यक्ति अपने कर्तव्यका पालन करता है, वह सदा पढ़ता ही रहता है। तुमने लिखा है कि तुम्हें पढ़ाईको छुट्टी दे देनी पड़ी है। ऐसा नहीं है। तुम सेवा-शुश्रूषा करते हुए पढ़ाई ही कर रहे हो। हाँ, यह कहना ठीक होगा कि अक्षरज्ञानको छुट्टी दे देनी पड़ी है। इस तरह छुट्टी देनेमें कोई हानि भी नहीं है। अक्षरज्ञान तो फिर प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन सेवा-शुश्रूषा करनेका अवसर फिर आयेगा, यह नहीं कहा जा सकता...[३]। अपने मनमें यह बात अंकित कर लेना कि तुम्हारा मन स्वच्छ है, इसलिए सेवा-शुश्रूषा करते हुए तुम बीमार नहीं पड़ोगे। अगर उसके बावजूद तुम बीमार हो जाओगे तो मैं उसकी चिन्ता नहीं करूँगा। इस तरह की पढ़ाईसे ही तुम और मैं सभी पूर्ण बन सकेंगे। ठीक तरहसे रहना सीखना ही पढ़ाई है। शेष सब पढ़ाई झूठी है।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]

'गांधीजीना पत्रो' से

३०५. भाषण: हैम्पस्टेडमें[४]

[लन्दन
अक्तूबर १३, १९०९]

श्री गांधीने कहा कि पूर्व और पश्चिमका प्रश्न बहुत बड़ा और उलझा हुआ प्रश्न है। मुझे पूर्व और पश्चिमके संपर्कका अठारह वर्षोंका अनुभव है। मैंने इस प्रश्नको समझनेकी कोशिश की है। मुझे लगता है कि ऐसे लोगोंके सामने, जैसे इस सभामें मौजूद हैं, मैं अपने सूक्ष्म अवलोकनके परिणाम बता सकता हूँ। जब मैं इस विषयका खयाल करता हूँ, मेरा दिल घबरा-सा जाता है। मुझे कई बातें ऐसी कहनी होंगी जो आपको अरुचिकर लगेंगी और

  1. जान पड़ता है, गांधीजीना पत्रोमें, जहाँसे यह चिट्टी ली गई है, इसका पहला अंश छोड़ दिया गया है।
  2. साधन-सूत्र में पत्र लिखनेका स्थान जोहानिसबर्ग दिया गया है। स्पष्ट ही यह गलत है, क्योंकि गांधीजी तब इंग्लैंडमें थे।
  3. यहाँ कुछ शब्द छोड़ दिये गये हैं ।
  4. गांधीजीने हैम्पस्टेड पीस ऐंड आविटेशन सोसाइटीके तत्त्वावधान में फ्रेंड्स मीटिंग हाउसमें की गई सभामें "पूर्व और पश्चिम" इस विषयपर यह भाषण दिया था। अध्यक्ष सी॰ ई॰ मॉरिस थे।