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१५०. भाषण: चाय-पार्टी में[१]

[जोहानिसबर्ग
जून २, १९०९]

श्री अस्वात और श्री क्विनके जेलसे छूटकर आनेके इस अवसरपर यदि मैं गुजरातीमें न बोलूँ, तो ठीक न होगा। श्री अस्वातके छूटनेपर हम लोग इतना ही करें, यह बहुत कम है। यह बात मैं श्री उमरजी सालेके छूटनेपर कह चुका हूँ, अब दुबारा अधिक नहीं कहूँगा। थोड़े लोग भी जो संकल्प कर लें, उसे पूरा कर सकते हैं। हजारों लोग तालियाँ बजाते और जेल जानेकी बात कहते थे, लेकिन अब बहुत कम हैं। मुझे इससे असन्तोष नहीं है। आज श्री अस्वातकी तबीयतका हाल पूछते हैं तो वे अच्छा बताते हैं। लेकिन श्री व्यासके कहनेके मुताबिक ऐसा नहीं है। वे बहादुर [जेलमें] दूसरे लोगोंकी तरह व्यक्तिगत मेहरबानीका लाभ उठाकर तम्बाकू आदि नहीं लेते थे। इसपर मुझे अभिमान होता है। वे जो कहते थे सो उन्होंने करके भी दिखाया और उसी प्रकार अन्ततक करेंगे। यशकी इच्छा रखे बिना ऐसा करनेवाले लोग कम ही हैं। दूसरोंको मान देना अपनेको मान देनेके समान है, क्योंकि उससे अपनी सज्जनता प्रकट होती है। कल सर्वश्री मनजी, फकीर शाह और कुछ दूसरे लोग भी, जिनके नाम मुझे याद नहीं आते, [छूट कर] आये। हम लोग उन्हें लेनेके लिए नहीं जा सके। वे भी मानके भूखे नहीं थे और न हैं। किन्तु हमने जिन्हें बड़ा माना है, उन्हें मान देना तो हमारा कर्तव्य है। श्री क्विन भी हमारे दोनों नेताओंके समान ही हैं और उनकी स्थिति भी उन्हींकी-जैसी हो गई है। जेलमें उन्हें पूपू और मक्की मिलती थी। जब गवर्नरने उन्हें चावल देनेको कहा, तब उन्होंने सूचित किया कि "सब चीनियोंको मिले, तभी मैं लूँगा।" सरकारने ऐसा नहीं किया तो उन्होंने चावल नहीं लिया। उनका यह काम छोटा न था। सचमुच श्री क्विन सत्याग्रहके स्तम्भ हैं। अब उनके संघके कार्यकारी अध्यक्ष जेल जानेके लिए अधीर हो रहे हैं। इन सबके साथ भगवान न्याय तो करेंगे ही। हमारे संघर्षका अनुभव लेनेवाले ऐसे लोगोंके कारण मुझे अभिमान होता है। जो हार गये हैं, उनसे मैं निराश नहीं होता। यह निश्चित समझ लें कि जीत हमारी ही होगी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-६-१९०९
 
  1. स्वागत के बाद (देखिए पिछला शीर्षक) सर्वश्री अस्वात और क्विनको श्री काछलियाके घरपर चाय-पार्टी दी गई थी।