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२८७. पत्र : छगनलाल गांधीको[१]

जोहानिसबर्ग
अगस्त २५, १९०८

[ चि० छगनलाल ]

तुम्हारा पत्र मिला। शिक्षित भारतीयोंके सम्बन्धमें वहाँ क्या हो रहा है, इसका मुझपर असर नहीं पड़ता। मुझे आशा है, मैं गुजराती स्तम्भोंमें[२] इसपर विचार करूँगा।

श्री कर्टिसने[३] मुझे लिखा है कि तुम्हें अपना काम ढंगसे और जल्दी निपटाना नहीं आता। उन्होंने मुझे इसका कोई ठोस उदाहरण नहीं दिया है, इसलिए मैं नहीं जानता कि उनके निष्कर्षका आधार क्या है। फिर भी तुम उनसे बात करो। उनकी बात ध्यानसे सुनो और जैसा वे सुझायें, ठीक वैसा ही करो। तुम्हें चाहिए कि तुम उनकी भरसक मदद करो ताकि वे अपने वर्तमान पदको भलीभाँति निभा सकें। वे बहुत व्यवस्था-कुशल हैं, और हो सकता है कि तुम्हें उनसे बहुत-कुछ सीखनेको मिले।

कुछ भारतीयोंने कल हरिलालको देखा था। उन्होंने मुझे बताया कि वह बिलकुल स्वस्थ दिखाई पड़ा और उसके कदम मजबूतीसे पड़ रहे थे। उन्हें देखकर वह अनेक बार मुस्कराया, जिससे मालूम पड़ता है कि उसका उत्साह कम नहीं हुआ है।

बापूके आशीर्वाद

[ अंग्रेजीसे ] टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४८६४) से।

२८८. भीखाभाई दयालजी मलियाका मुकदमा[४]

[ जोहानिसबर्ग
अगस्त २६, १९०८ ]

गत बुधवारको जोहानिसबर्गकी "बी" अदालतमें श्री एच० एच० जॉर्डनके इजलासमें श्री भीखाभाई डी० मलियाके ऊपर एक मामला दायर हुआ। अभियोग यह था कि सन् १९०७ के संशोधित एशियाई कानून २ के खण्ड ८, उप-खण्ड ३ के मातहत वे पंजीयनका प्रमाणपत्र दिखानेके लिए कहनेपर नहीं दिखा सके। श्री गांधी उनकी तरफसे पैरवी कर रहे थे। अधीक्षक श्री वरनॉनने गिरफ्तारीके बारेमें सबूत पेश करते हुए कहा कि मैंने यह

 
  1. कागज फटा होनेसे इस पत्रके पानेवालेका नाम गायब है। चूँकि पत्र में फीनिक्सकी बातें हैं, इसलिए अनुमान है कि यह छगनलाल गांधीको लिखा गया होगा।
  2. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ४७६।
  3. एक जर्मन थियोसोफिस्ट, जो फीनिक्सकी पाठशालाके व्यवस्थापक थे। वे भारत आये थे और सेवाग्राममें गांधीजीके साथ रहे थे। वहीं १९६० में उनकी मृत्यु हुई।
  4. यह इंडियन ओपिनियन में "एक बेतुका मुकदमा" शीर्षकसे छपा था।