पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/४९८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

१. श्री सोराबजीको अधिवासके पूर्ण अधिकारोंके साथ बहाल किया जाये।

२. सभी बन्दियोंको रिहा कर दिया जाये।

३. एशियाई अधिनियम रद कर दिया जाये।

४. शिक्षित भारतीयोंके सम्बन्धमें कठिन जाँचके विवेकाधिकारसे संयुक्त एक सामान्य शैक्षणिक परीक्षा हो।

५. नये विधेयकमें आवश्यक परिवर्तन करके सर पर्सीकी[१] टिप्पणियोंके अनुसार शर्तें शामिल की जायें।

६. जलाये हुए प्रमाणपत्र बिना किसी शुल्कके फिरसे दे दिये जायें।

७. एशियाई अधिनियमकी मुख्य-मुख्य धाराओंको उस हदतक नये विधेयकमें फिरसे रख लिया जाये, जिस हदतक वे एशियाई जनसंख्यापर उचित नियन्त्रण लगाने तथा धोखाधड़ीको रोकनेके लिए आवश्यक हों।

८. विधेयकका मसविदा तफसील सम्बन्धी सुझावोंके लिए संघकी समितिको दिखाया जाये।

स्पष्ट है कि सर पर्सीकी टिप्पणियों द्वारा सूचित शर्तोंमें इस निवेदनसे कोई बड़ा रद्दोबदल नहीं होता। संसद तथा देशको यह दिखानेमें मुझे कोई कठिनाई नहीं दीख पड़ती कि एशियाई अधिनियमको रद करना एक ऐसे शोभनीय कार्यके अतिरिक्त और कुछ नहीं है जिससे उपनिवेश के एक प्रतिनिधित्वहीन समाजको, उसपर विधानसभाका नियन्त्रण किसी भी प्रकार ढीला किये बिना, समाधान प्राप्त होगा। सोराबजीके मामलेने लोगोंका उत्साह चरम सीमातक पहुँचा दिया। इसके कारण गहरा विक्षोभ उत्पन्न हुआ। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि वर्तमान परिस्थितियोंमें मैं जितना आगे जाने की बात सोचता, सभा कुल मिलाकर उससे कहीं आगे बढ़ गई थी। किन्तु यह निश्चित वचन देकर ही, कि जिस कानूनके रद किये जानेका वादा किया जा चुका था, यदि उसे रद नहीं किया गया तो मैं स्वयं सत्याग्रह आन्दोलनमें उनका नेतृत्व करूँगा, मैं सभाको इस बातपर राजी कर सका कि वह समाजको उपर्युक्त शर्तों तक सीमित रखे। मैं अपने देशवासियोंको और मुसीबतमें नहीं डालना चाहता था, इसीलिए मैं अधिनियमके पूर्णतः रद किये जानेकी माँगको इस हद तक छोड़नेके लिए तैयार था कि जिन लोगोंने अधिनियमको स्वीकार किया है उन्हें छोड़कर वह सबके प्रति निष्क्रिय हो जाये। किन्तु मुझे यह कहते हुए खुशी होती है कि वे इसे सुननेके लिए तैयार नहीं हुए। और उन्होंने कहा कि वे बड़ी-बड़ी मुसीबतें सहने को तैयार हैं। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि सरकार उपर्युक्त शर्तोंको स्वीकार करनेकी मेहरबानी करके इस विवादको समाप्त कर देगी। यदि सरकार ऐसा करती है तो जहाँतक एशियाई अधिनियमका सम्बन्ध है कमसे-कम मैं और कोई कदम नहीं उठाऊँगा।

एक बात और; एक वक्ता उठ खड़ा हुआ और बोला कि इन शर्तोंमें श्री चैमनेको हटा दिये जानेकी बात भी जोड़ दी जाये, लेकिन उसे शर्तोंमें सम्मिलित नहीं किया गया। तथापि मैं अपना यह मत लिखे बिना नहीं रह सकता कि श्री चैमने अनभिज्ञ और नितान्त अयोग्य हैं। यह मैं सम्पूर्ण उपनिवेशके हितकी दृष्टिसे कहता हूँ। मेरा उनसे कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं है। मेरे प्रति तो वे भी सदैव सौजन्यपूर्ण रहे हैं; किन्तु मैं बहुत कोशिश करके भी उन्हें उस पदके लिए जिसपर वे काम करते हैं, योग्य माननेमें असमर्थ हूँ। मेरी निश्चित धारणा

 
  1. सर पर्सी फिट्ज़पैट्रिक।