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२०६. पत्र: ए० कार्टराइटको

[ जोहानिसबर्ग ]
जुलाई ९, १९०८

प्रिय श्री कार्टराइट,

आपके पत्र तथा आपकी उस दिलचस्पीके लिए जो आप मेरे देशवासियोंकी मुसीबतोंमें ले रहे हैं, मैं आपका अत्यन्त अभारी हूँ। ट्रान्सवालके लोकनायकोंकी सद्भावना खोनेके बजाय मैं अन्य बहुत-कुछ खोना ज्यादा पसन्द करूँगा। इसलिए आगामी रविवारको प्रमाणपत्रोंका जलाना मुल्तवी कर दिया जायेगा। मेरा विश्वास है कि आप संघर्षकी प्रगतिको बराबर देखते चल रहे हैं।

जैसा कि आप जानते हैं, श्री सोराबजीपर अब प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियमके अन्तर्गत मुकदमा कतई नहीं चलाया जायेगा।[१] मुझे यकीन है कि किसी शिक्षित एशियाईको इस अधिनियमके अन्तर्गत एशियाई अधिनियमका सहारा लिए बिना सजा दिलाना निस्सन्देह असम्भव है। इससे मेरी बात ही सिद्ध होती है। इस्तगासेकी मूर्खता तथा श्री चैमनेकी उससे भी अधिक मूर्खताके कारण सरकारकी ओरसे पेश की गई गवाहीकी एक त्रुटिका मैं लाभ उठा सका और श्री सोराबजी छोड़ दिये गये। किन्तु वे तुरन्त ही फिर गिरफ्तार कर लिये गये। इससे सुपरिटेंडेंट श्री वरनॉन तथा श्री चैमनेकी प्रतिशोधकी भावना प्रकट होती है। श्री वरनॉनका कहना था कि श्री चैमनेसे प्राप्त आदेशके अनुसार ही वे पुनः गिरफ्तार किये जा रहे हैं। सौभाग्यसे मैं श्री सोराबजीके साथ मार्शल स्क्वेयर पुलिस थाने तक गया और मैंने डिप्टी कमिश्नर पॉटरसे मुलाकात की। उन्होंने, विश्वास है, जो गलती की गई थी उसे समझा और मेरी मुलाकात के प्रायः तुरन्त बाद ही श्री सोराबजीको हवालातसे मुक्त कर देनेका आदेश दे दिया। मैं नहीं जानता कि कल क्या होगा। मुझे कुछ-कुछ ऐसा लगता है कि ये लोग फिरसे गड़बड़ी करेंगे। यदि ऐसा हुआ तो मेरा इरादा इसका लाभ उठाकर उन्हें फिरसे छुड़ा लेनेका है। यदि कोई निपटारा नहीं हुआ तो निस्सन्देह अन्तमें श्री सोराबजीको अपनी काली चमड़ीका दण्ड भुगतना ही पड़ेगा और उन्हें जेल होगी। वे मुझे एक दृढ़ निश्चयवाले नवयुवक मालूम पड़ते हैं और अपने शिक्षित भाइयोंके लिए अपनेको कुर्बान कर देना चाहते हैं।

मैं आपके पढ़नेके लिए एक पत्र इसके साथ भेज रहा हूँ, जिसपर श्री हॉस्केन, श्री फिलिप्स, श्री डोक, श्री पेरी, श्री डेविड पोलक तथा श्री कैलनबैकके हस्ताक्षर हैं। यह आज जनरल स्मट्सकी सेवामें भेज दिया जायेगा। सम्भवतः आप ईसप मियाँ द्वारा लिखा गया पत्र[२] देख चुके हैं। उन्हें सार्वजनिक सभाके मुल्तवी किये जानेकी सूचना देते हुए आज दूसरा पत्र[३] लिखा जा रहा है। उसकी भी एक नकल साथमें भेजी जा रही है।

 
  1. देखिए "सोराबजी शापुरजीका मुकदमा—१", पृष्ठ ३३७-४०।
  2. देखिए "पत्र: उपनिवेश सचिवको", पृष्ठ ३३४-३७।
  3. देखिए पिछला शीर्षक।