२०५. पत्र: उपनिवेश-सचिवको
[ जोहानिसबर्ग ]
जुलाई ९, १९०८
प्रिटोरिया
महोदय,
एशियाई अनुमतिपत्रोंके सम्बन्धमें इसी १ तारीखके मेरे पत्रके[१] उत्तरमें आपका ६ तारीखका पत्र[२] प्राप्त हुआ। मेरे संघने यह उग्र कदम बहुत अधिक और उचित सोच-विचारके बाद और दुःखके साथ एवं केवल तब उठाया है जब कोई दूसरा रास्ता सम्भव नहीं रहा है। मेरा संघ अब भी इस कदमसे, जो बहुत तीव्र संघर्षका रूप ले सकता है, और हम जिस देशमें रहते हैं उसके कानूनोंके विरोधसे, बचनेके लिए अत्यन्त चिन्तित है; किन्तु जब कानूनके प्रति आदर और अन्तरात्माकी आवाज--–इन दोनोंमें से एकको चुननेका प्रश्न आता है, तब मेरी नम्र रायमें इनमें से कौन-सी चीज चुनी जाये इस बारेमें कोई हिचकिचाहट नहीं हो सकती। मेरा संघ अब भी लोगोंको परवाना-शुल्क चुकानेकी सलाह देनेके लिए अत्यन्त इच्छुक है।
मेरे संघको मालूम हुआ है कि जिन एशियाइयोंने परवानोंके लिए प्रार्थनापत्र दिये हैं उनसे एशियाई विधेयकके अन्तर्गत अँगूठोंके निशान माँगे जा रहे हैं। मेरी नम्र रायमें इससे भी समझौता इस अर्थके अन्तर्गत भंग होता है, जो मेरे संघने लगाया है; और वह अर्थ यह है कि विधेयक उन लोगोंपर लागू नहीं होना चाहिए जिन्होंने पंजीयनके लिए स्वेच्छया प्रार्थनापत्र दिये हों।
मेरे संघके इसी ६ तारीखके पत्रके[३] बारेमें बहुत-से यूरोपीय मित्रोंने सलाह दी है कि जबतक सरकारका अन्तिम निर्णय प्राप्त नहीं हो जाता, तबतक स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्रोंको जलानेके लिए की जानेवाली सार्वजनिक सभा स्थगित रखनी चाहिए। मेरे संघने यह भी सुना है कि सरकार मेरे पत्रमें उल्लिखित पहले तीन मुद्दोंको छोड़नेके लिए तैयार है, किन्तु शिक्षाकी कसौटी प्रधान बाधा है। यदि ऐसी बात है और यदि अभी समय है तो मेरा संघ ऐसी आशा करता है कि शिक्षाकी कसौटीको पर्याप्त कठिन बनाकर इस बाधापर विजय प्राप्त की जा सकती है।
आपका आज्ञाकारी सेवक,
ईसप इस्माइल मियाँ
अध्यक्ष
ब्रिटिश भारतीय संघ
इंडियन ओपिनियन, १८-७-१९०८
- ↑ अनुपलब्ध।
- ↑ इसमें सहायक उपनिवेश-सचिव श्री गॉर्जेसने कहा था कि जो एशियाई पंजीयन प्रमाणपत्र न दिखा सकेंगे वे परवाना लेनेके अधिकारी नहीं हैं। उन्होंने ब्रिटिश भारतीयोंको कानूनके विरुद्ध व्यापार करनेकी सलाह देनेकी ब्रिटिश भारतीय संघकी उम्र कार्रवाईपर खेद प्रकट किया था।
- ↑ देखिए "पत्र: उपनिवेश सचिवको", पृष्ठ ३३४-३७।