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२. रामसुन्दर "पण्डित"

रामसुन्दर अब "पण्डित" नहीं रहा; इसलिए उसके नामका वह हिस्सा हमने छोटे अक्षरोंमें न्यारा छापा है। उसने "पण्डित" आस्पद ग्रहण कर लिया था। लेकिन अब पण्डिताई चली जानेपर उसे "पण्डित" नहीं कह सकते।

हमने रामसुन्दरको इस पत्रमें बड़ा सम्मान दिया। उसके लिए हमने आदरभरे शब्दोंका प्रयोग किया, और कानूनके प्रति उसके व्यवहारको अनुकरणीय बताया१, इसके लिए हम अपने पाठकोंसे क्षमा चाहते हैं। वह हमारी गलतफहमी थी। सही बातकी हमें खबर नहीं थी। इसलिए हम निर्दोष हैं। हमारे यहाँ लोकोक्ति है कि मनुष्यके पेटकी बात और ढोलकी पोलका किसीको पता नहीं चलता। उसी प्रकार हम भी रामसुन्दरके पेटकी बात नहीं जान पाये। ऊपरसे उसने जो जाहिर किया उसे सही मानकर हमने उसे बहादुर समझा। हम औरोंके सम्बन्धमें आगे भी ऐसा ही करेंगे। संसार इसी प्रकार चल सकता है। यदि हम प्रत्येक सच्चे जान पड़नेवाले मनुष्यपर सन्देह करके उसका बहिष्कार कर दें तो यह ईश्वरीय ज्ञानका दावा करने जैसा होगा। मनुष्यके हृदयको जाननेवाला तो केवल ईश्वर ही है। हम तो मनुष्यको उसके कामसे ही पहचान सकते हैं। रामसुन्दरका जो काम अच्छा लगा उसे लोगोंके सामने रखना हमारा कर्तव्य था। इसी प्रकार अब जब कि उस ठगका भण्डा फूट गया है तब हमें उसकी ठगीको भी पाठकोंके सामने रखते हुए संकोच नहीं होता। हमसे भ्रमवश जो दोष हुआ उसका हम इस तरह निराकरण कर रहे हैं। कौमके लेखे आज रामसुन्दर मर चुका है। उसका जीवन मिथ्या हो गया है। उसने स्वयं अपने हाथसे विषका प्याला पिया है। हम कौमी मौतसे शारीरिक मौतको बेहतर समझते हैं। वह ऐन मौकेपर जर्मिस्टनसे नेटालकी ट्रेनमें सवार होकर चल दिया। यदि इससे पहले वह किसी दुर्घटनामें मर गया होता तो अमर हो जाता। लेकिन उसका भाग्य खराब था। वह जेलके डरसे हीन और कायर बनकर जर्मिस्टनकी अपनी जमातको, कौमको, स्वयं अपनेको और अपने कुटुम्बको धोखा देकर भाग गया है। हम ईश्वरसे प्रार्थना करते है कि अब भी वह उसे सन्मति दे।

हमने कटु शब्दोंका प्रयोग किया है, किन्तु हमारी भावना दयापूर्ण है। हमारी समझमें उसका दोष छिपाना निर्दयता होगी। यदि उसके गुण न गाये होते तो उसके दोषका ऐलान करनेकी आवश्यकता न पड़ती।

हमें अब भी रामसुन्दरके चित्रका चिन्तन करना है। उस चित्रको ध्यानमें रखकर सदैव प्रार्थना करना है कि "हे खुदा (ईश्वर), रामसुन्दरकी जैसी दुर्दशासे हमें बचाना। हमें झूठी हिम्मत न देना और अन्ततक सम्हालना।" किसीके मनमें जब-कभी क्षुद्र विचार आयें तब उसे रामसुन्दरका नाम लेकर चौंकना चाहिए और अपने-आपको धिक्कारकर ईश्वरका स्मरण करना चाहिए। बच्चोंको जैसे हम "भूत" कहकर डराते हैं वैसे रामसुन्दर-रूपी भूतका खयाल करके हमें सावधान रहना है कि वह भूत हमसे न चिपटे।

१. देखिए खण्ड ७, पृष्ठ ३६३, ३७७ और ४१२।