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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(७) इसलिए आपका प्रार्थी सविनय प्रार्थना करता है कि यह सम्मान्य सदन विधेयककी उपर्युक्त धाराओंको अस्वीकार करनेकी या कोई दूसरी राहत, जो उसे उचित प्रतीत हो, देनेकी कृपा करे। और उसके इस कार्यके लिए, आदि।

ईसप इस्माइल मियाँ
[ अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ ]

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २०-६-१९०८

१७०. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

रविवार [जून १४, १९०८]

जनरल स्मट्स

समझौतेका अन्त रोज-रोज नजदीक आता हुआ जान पड़ता है। फिर भी परिस्थिति ऐसी मजेदार हो गई है कि मैं आज जो कुछ लिख रहा हूँ छपनेतक वह सबका-सब रद हो जाये या सबका-सब सही उतरे यह सम्भव है।

श्री गांधी के जनरल स्मट्सको पत्र[१] लिखनेके बाद श्री लेनर्डसे मिलनेकी कोशिश की गई, किन्तु श्री लेनर्ड मिल नहीं सके। उक्त महोदय एक बड़े आयोगमें व्यस्त होनेके कारण फिलहाल किसी से मिलते नहीं जान पड़ते। इस तरह प्रतीक्षा करनेके बाद और जनरल स्मट्स से कोई जवाब न पाकर श्री लेनर्डसे कुछ कम किन्तु खासे अच्छे बैरिस्टर श्री वार्डसे श्री गांधीने शुक्रवार तारीख १२ को भेंट की। श्री वार्डकी राय भी श्री लेनर्ड जैसी ही जान पड़ी कि सरकारको प्रार्थनापत्र वापस करनेके सिवा चारा नहीं है। अतएव श्री गांधीने श्री स्मट्सको तार[२] किया कि यदि वे जवाब नहीं देते, तो एक बड़े वकीलकी यह सलाह है कि मामला सर्वोच्च न्यायालयमें जाना ही चाहिए। एक तरफ तार गया और दूसरी तरफ श्री इब्राहीम इस्माइल अस्वात, श्री ईसप मियाँ और श्री गांधीने एक हलफनामा[३] बनाया और मामलेकी तैयारी शुरू हो गई। इस बीच श्री स्मट्सका तार आया कि शनिवार तारीख १३ को सुबह ९.४५ पर विचेस्टर हाउसमें मुलाकात की जाये। तदुपरान्त इसको देखते हुए हलफनामेका प्रिटोरिया भेजा जाना रोक दिया गया।

जनरल स्मट्सने मुलाकातमें कहा कि नया कानून तो रद होगा और प्रवासी प्रति-बन्धक कानूनमें फेरफार किया जायेगा, किन्तु फिलहाल उन्हें अपने कानून बनानेवालोंसे मिलना है। इसलिए उन्होंने एक सप्ताह तक रुकनेकी सलाह दी और कहा कि ब्रिटिश भारतीय संघ समस्त भारतीयोंकी ओरसे नहीं बोल सकता; उन्हें कुछ भारतीयों द्वारा कानून बनाये रखनेके लिए प्रार्थनापत्र मिला है।

 
  1. देखिए "पत्र: जनरल स्मट्सको", पृष्ठ २६८-७०।
  2. यह उपलब्ध नहीं है।
  3. देखिए "प्रार्थनापत्र: ट्रान्सवाल सर्वोच्च न्यायालयको", पृष्ठ ३०३-०४ और ईसप मियाँ तथा गांधीजीके हलफनामोंके लिए देखिए १४ ३०५ और ३०६-०७।