तो मेरे पास पैसे ही नहीं। मैं निर्वासन माँगूँ? यह मैं कैसे माँग सकता हूँ? मुझे अपने प्राण इतने अधिक प्रिय नहीं हैं कि मैं भयत्रस्त जहाँ-तहाँ मारा-मारा फिर कर अपने जीवनके शेष दिवस पूरे करूँ।
कदाचित् कोई कहेगा कि अब मुझे मौन धारण कर एकान्तमें बैठना चाहिए, यह भी मुझसे नहीं होगा। मेरा विश्वास है, मुझे प्रभुका आदेश है कि मैं जिन्हें सद्गुण मानता हूँ उनके सम्बन्धमें अपने लोगोंके सामने विवेचन करूँ। फिर मुझे आदेश है कि मैं बराबर सदाचारके नियमोंकी खोजमें रहूँ। मेरा खयाल है कि आप इस बातको नहीं समझ सकते, किन्तु इस कारण मुझसे तो चुप नहीं रहा जा सकता।
इसके पश्चात् न्यायालयने सुकरातको मृत्युदण्ड देनेका निर्णय किया। इसपर महान सुकरातने निर्भय होकर तत्काल यह कहा:
मृत्यु-दण्ड न दिया जाता तो भी मुझे अब कुछ ही दिन जीवित रहना था। इतने अल्पकालके लिए आप निर्दोष व्यक्तिको मृत्यु-दण्ड देकर अपयशके भागी बने हैं। यदि आप कुछ समय और रुके होते तो मेरी मृत्यु अपने-आप ही हो जाती, क्योंकि मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूँ। मैंने आपके सम्मुख ओछे तर्क दिये होते और दूसरे सामान्य उपाय बरते होते तो मैं मृत्यु-दण्डसे बच जाता। किन्तु वह मेरा धर्म न था। मैं मानता हूँ कि स्वतन्त्र मनुष्य मृत्यु-भय या ऐसे किसी अन्य भयसे बचनेके लिए कभी अनुचित काम नहीं करता। मृत्युसे बचने के लिए बुरे-भले सब उपाय करना मनुष्यका कर्तव्य नहीं है। लड़ाईमें मनुष्य शस्त्र डालकर शत्रुकी शरणमें जाता है तो बच जाता है। किन्तु हम उसे कायर मानते हैं। वैसे ही जो मनुष्य मृत्युसे बचनेके लिए अनीतिमय उपायोंका आश्रय लेता है वह अधम माना जाता है। मैं मानता हूँ कि अधमतासे बचना मृत्युसे बचनेकी अपेक्षा अधिक कठिन है, क्योंकि अधमता मृत्युकी अपेक्षा अधिक तेज दौड़ती है। आप उतावले और उच्छृंखल हैं, इसलिए आपने विचार किये बिना तेजीसे दौड़ते हुए यह अनीतिमय कदम उठाया है। आपने मुझे-मृत्यु दण्ड दिया है। मैं अब इस संसारका त्याग करूँगा। यह माना जायेगा कि मेरे विरोधी पक्षने सत्यका त्याग किया और अन्याय बटोरा। मैं अपना दण्ड भोगूँगा, तो उनको अपनी करनीका दण्ड भोगना होगा, ऐसा ही हुआ करता है। इस दृष्टिसे देखें तो यह ठीक ही है।
अब मुझे अपनी मृत्युसे पहले दो बातें कहनी हैं। मैं मानता हूँ कि मेरे कारण आपको बड़ी अड़चन होती थी; लेकिन यह नहीं मानना चाहिए कि मुझे दूर करके आप अनीति चला ही सकेंगे। आप यह न समझें कि कोई आपको दोष न देगा। मृत्यु-स्थानमें ले जाये जानेसे पहले मैं उन लोगोंसे, जिन्हें मेरी बातोंपर विश्वास है, दो शब्द कहूँगा। इसलिए जिन्हें मेरी बातें सुननी हों, वे ठहर जायें। मृत्युका अर्थ क्या है, यह मैं जैसा समझता हूँ वैसा आपको बताना चाहता हूँ। आप ऐसा मानें कि मुझपर जो कुछ घटित होनेवाला है वह अच्छा ही है। जो मृत्युको दुःखरूप मानते हैं वे भूल करते हैं। मृत्युके दो परिणाम माने जा सकते हैं: एक तो यह कि जो मनुष्य मर गया उसका कोई अंश शेष नहीं रहता और उसका चेतन [आत्मा] भी नष्ट हो जाता है; दूसरा, आत्मा एक स्थानसे दूसरे स्थानमें चली जाती है। अब यदि पहला परिणाम सत्य हो और चेतन मात्रका नाश होता हो तो यह स्थिति एक