१२२. भारतमें संघर्ष
जान पड़ता है, इस समय भारतमें बड़ी उथल-पुथल मची हुई है। हम प्राप्त तारोंके अनुवाद दे रहे हैं। इनसे प्रकट हो जायेगा कि भारतकी सीमापर जो विद्रोह हो रहा है। वह ऐसा-वैसा नहीं है। २०,००० अफगान निकल पड़े हैं। दूसरी ओर, भारतमें अशान्ति फैलती जा रही है। बम फटनेसे एक गोरी औरतकी मृत्यु हो गई। तारसे विदित होता है कि उक्त बम फेंकने का उद्देश्य न्यायाधीशको मारना था। फेंकनेवालेको धोखा हो जानेसे एक निर्दोष स्त्रीकी[१] मृत्यु [ तत्काल ] हुई।
[ बादमें अन्य ] दो व्यक्तियोंकी मृत्यु [ भी हुई। ] यह काण्ड दिलमें कँपकँपी पैदा करनेवाला है। किन्तु भारतके इतिहासमें यह कोई बड़ी बात नहीं है। इसका निष्कर्ष भयंकर है। रूसकी पद्धति भारतमें आ गई, यह हमारे लिए प्रसन्न होनेकी बात नहीं है। ऐसी पद्धतिको स्थान देकर भारतीय अपनी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते। जो रूसमें हो सकता है, वह भातरके भी अनुकूल होगा, यह नहीं मानना चाहिए।
सम्भव यह है कि ऐसी घटनाओंसे लोग अपना कर्तव्य भूल जायेंगे। अधिकार प्राप्त करनेका जो सरल और सीधा रास्ता है, वे उसे भूल जायेंगे और अन्तमें हम विदेशियोंके विरोधमें जिन उपायोंका इस्तेमाल मान्य करते हैं, वही उपाय हमारे विरुद्ध काममें लाये जायेंगे। सदा यही होता आया है।
इसलिए इस परिस्थितिमें भारतीयोंके प्रसन्न होनेकी कोई बात नहीं है। किन्तु हम सरकारको दोषसे मुक्त नहीं मान सकते। यदि सरकार अत्याचार न करती, तो लोगोंको विस्फोटकों का उपयोग करनेकी बात ही न सूझती।
इंडियन ओपिनियन, ९-५-१९०८
- ↑ अप्रैल ३०, १९०८ को मुजफ्फरपुरमें खुदीराम बोसने जिला न्यायाधीश श्री किंग्सफोर्डकी हत्याके इरादेसे एक घोड़ा-गाड़ीपर बम फेंका था। इस घोड़ा-गाड़ीमें श्री किंग्सफोर्ड नहीं थे। उसमें बैठे हुए लोग, श्रीमती और कुमारी केनेडी और उनका कोचवान भयानक रूपसे जख्मी हुए। श्रीमती केनेडीकी तत्काल और अन्य दोनोंकी बादमें मृत्यु हो गई । खुदीरामको बादमें फांसी दे दी गई।