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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

बतानेसे बहुत आगे जाती है। पण्डितजीने प्रचार किया है, क्योंकि प्रत्येक आत्मसम्मानी भारतीयकी भाँति उनकी सम्मतिमें भी इस अधिनियमको माननेसे भारतीयोंके समस्त पुरुषोचित गुण चले जाते हैं। मेरा खयाल है कि पण्डितजीने जो-कुछ किया है उसको देखते हुए वे निन्दाके बजाय स्तुतिके पात्र हैं। उन्होंने न्यायाधीशसे अभियुक्तके इस वक्तव्यपर विश्वास करनेका निवेदन किया कि जो शिकायतें कभी प्रकाशमें नहीं आई और जिनके सम्बन्धमें अभियुक्तको मुकदमेके दिन तक कोई जानकारी नहीं थी, उनमें कोई सत्य नहीं है। अभियुक्त पंजीयकके आदेशका उल्लंघन करनेके परिणामोंसे परिचित हैं, किन्तु उनके अपने ही शब्दोंमें, उनको एक उच्चतर कर्तव्यका आह्वान मिला है और उसी आह्वानपर इस न्यायालयके सम्मुख कैदकी या उससे भी बड़ी सजा भुगतनेके लिए उपस्थित हुए हैं।[१]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-११-१९०७

२७३. प्रस्ताव: सार्वजनिक सभा में[२]

[जर्मिस्टन
नवम्बर १४, १९०७]

एशियाई पंजीयन अधिनियम के अन्तर्गत एकमात्र हिन्दू पुरोहित रामसुन्दर पण्डितको सजा सुनाई जानेके बाद जर्मिस्टनमें ब्रिटिश भारतीयोंकी महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक सभा हुई। महामहिम सम्राट्से दमनके विरुद्ध, जिससे निर्दोष भारतीय पीड़ित हैं, संरक्षण-प्राप्तिके लिए आवेदनका प्रस्ताव स्वीकृत हुआ। पण्डितजीने सिद्धान्तके बलिदानके बजाय जेल जाना स्वीकार किया है। हजारों इसके लिए तैयार हैं।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-११-१९०७
  1. रामसुन्दर पण्डितको एक महीनेकी कैदकी सजा दी गई।
  2. रामसुन्दर पण्डितका मुकदमा खत्म हो जानेपर गांधीजीने एक सार्वजनिक सभामें भाषण दिया; देखिए पृष्ठ ३६६-६७। प्रस्ताव एक तारके रूपमें लिखा गया था जो स्पष्टतया दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति के माध्यमसे भेजा जानेवाला था और अनुमानतः गांधीजीने ही इसे तैयार किया था। यह भी तय किया गया था कि पण्डितजीके परिवारके प्रति बधाईके तार भेजे जाये और दूसरे दिन दूकानें तथा सब कारवार स्थगित रखे जायें।