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१७८. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

अनुमतिपत्र कार्यालयरूपी महामारी अमुक गाँव गई और वहाँसे बगैर किसीको छूत लगाये मिट गई; भारतीय कैदियोंको भी उसकी छूत नहीं लगी। महामारीको भगानेवाले वैद्य (स्वयंसेवक) उपस्थित थे। जहाँ सभी स्वस्थ थे वहाँ वैद्योंकी जरूरत ही न पड़ी।

यह रिपोर्ट अब सामान्य हो गई है। इसलिए मैं स्टैंडर्टन, हाइडेलबर्ग तथा फोक्सरस्टको इतनी जल्दी मुबारकबाद नहीं देता। अब हम इस बीमारीके आदी हो गये हैं। इसकी दवा भी जानने लगे हैं। डर्बनसे सबको एक ही दवा मिलती रहती है। और जहाँ दवासे या बिना दवाके सभी स्वस्थ हों वहाँ मुबारकबाद किसे दिया जाये? जहाँ सभी एक जैसा काम करते हों वहाँ प्रशंसा किसकी की जाये? इसलिए मैं तो अब खुदाकी ही प्रशंसा करूंगा कि उसने आजतक इन सब गाँववालोंको अच्छी बुद्धि दी है और सब एकदिली और हिम्मतसे अपने कर्तव्यपर डटे हुए हैं। लेकिन मुझे बार-बार कहना चाहिए कि यद्यपि ऊपर बताया हुआ काम जरूरी है, फिर भी उससे ज्यादा कीमती काम अभी करना बाकी है। जो यह मानते हों कि हम बिना मुसीबत उठाये, बिना जेल गये, बिना देश-निकाला भोगे केवल बहिष्कारके बलपर जीत जायेंगे तो यह बड़ी भूल है। "दुःख भोगे सुख होय" इस बातको हमें याद रखना है। दुःख भोगे बिना सुखकी कीमत भी नहीं हो सकती। जिसने ठण्डका अनुभव न किया हो, उसे धूपकी कीमत कैसे मालूम होगी? यदि सभी कंकर हीरे होते तो हीरोंको कौन छूता?

हमीदिया अंजुमन

यह अंजुमन अपना काम बड़ी हिम्मतसे किये जा रही है। मैं देखता हूँ कि हम जिस युद्ध में लगे हैं, वह धर्मयुद्ध है। ईमानको बात आकर खड़ी हुई है। मसजिदमें इबादत की जा रही है कि "हे खुदा, हम यदि सच्चे हों तो हमारी मदद करना।" लोगोंके सामने अब एक ही प्रश्न पेश किया जाता है। कानून चाहिए या ईमान? मौलवी साहब अहमद मुख्त्यारने पिछले रविवारको इसी आशयका एक जोशीला भाषण दिया था। उन्होंने 'कुरान शरीफ' की आयतों द्वारा यह सिद्ध कर दिया था कि मुसलमानोंका एक यही कर्तव्य है कि अब वे केवल खुदासे ही अर्जी करें। सच्चा शिष्टमण्डल वहीं ले जाना है। वह महान न्यायाधीश किसीका लिहाज नहीं करता, किसीकी शक्तिके सामने नहीं झुकता। उसपर चमड़ीके रंगका कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता। वह तो केवल दिलका रंग देखता है। जिसने उसे अपने पक्ष में रखा है, उसकी कभी हार नहीं होती। मेरी सिफारिश है कि मौलवी साहबके इन शब्दोंको सभी भारतीय भाई अपने हृदयमें अंकित कर रखें।

जर्मिस्टनकी सभा

सनातन वेद धर्म सभाने जन्माष्टमीके उत्सवके सिलसिलेमें सभा की थी। वहाँ भी यही आवाज सुनाई पड़ती थी। हिन्दू बड़ी संख्या में आये थे। श्री गांधी, श्री पोलक,