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चर्चिलका भाषण

आफतें बहुत हैं। मुकाबलेकी पूरी आवश्यकता है। और लड़ाईमें एक भी स्थानपर भूल हुई तो उससे सारे समाजको नुकसान पहुँचनेकी सम्भावना है। हम मानते हैं कि नगरपालिका-मताधिकारके सम्बन्धमें उतावली करनेकी कुछ भी आवश्यकता नहीं थी। विलायतमें आजकल जिस विधेयकपर चर्चा चल रही है उसे रद करवानेका प्रयास किया जा रहा है। एस्टकोर्टवाले मुकदमेका प्रभाव बुरा पड़नेकी सम्भावना है। सांप-छछूंदरकी-सी गति हो गई है। अब यदि मुकदमा छोड़ दिया जाये तो बदनामी होगी और यदि चलानेका परिणाम बुरा निकला तो शायद विधेयक स्वीकृत हो जाये। पाँच-सात भारतीयोंको मताधिकार मिले तो क्या और न मिले तो क्या? परन्तु यह अधिकार नहीं जाना चाहिए। क्योंकि, अधिकारके चले जानेसे हम दर्जें में गिर जाते हैं। अधिकार होते हुए भी उसका उपयोग न करें तो उसमें गिरावट नहीं आती। इस उदाहरणसे हमें आशा है कि नेटालके सभी स्थानोंका भारतीय समाज कांग्रेससे सलाह लिये बिना कोई कदम नहीं उठायेगा। इसीके साथ हमारा फिरसे कहना है कि एस्टकोर्टकी अपील अब आगे की जानी चाहिए। नेटालके भारतीयोंको याद रखना है कि यदि वे नगरपालिका-मताधिकार लेना चाहते हों तो इस महीने के समाप्त होनेसे पहले अपना-अपना कर चुका दें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-५-१९०७
 

४८१. चर्चिलका भाषण

उपनिवेश सम्मेलनके बारेमें भाषण देते हुए श्री चर्चिल कह गये हैं कि काफिरों और एशियाई प्रवासियोंके सम्बन्ध में दक्षिण आफ्रिका के लोगोंको जो कानून बनाना हो उसकी उन्हें छूट है। इसका अर्थ यह हुआ कि नये एशियाइयोंको प्रवेश देने-न-देनेके सम्बन्ध में दक्षिण आफ्रिका उपनिवेशको पूरा अधिकार है। इसलिए शेष इतना ही बचा है कि दक्षिण आफ्रिकामें आज रहनेवाले भारतीयोंके बारेमें जो भी कानून बनाये जायेंगे उनमें बड़ी सरकार कदाचित् थोड़ा बहुत हस्तक्षेप कर सकती है। किन्तु ट्रान्सवालका नया कानून प्रवाससे सम्बन्धित नहीं है। वह यहाँके वर्तमान निवासी भारतीयोंपर लागू होता है। फिर भी बड़ी सरकारने उसे मंजूर किया है। यों देखा जाये तो मालम होता है कि दक्षिण आफ्रिकामें स्थानीय सरकार स्वच्छन्दतापूर्वक भारतीयोंपर आक्रमण करेगी। उस आक्रमणका सामना करने के लिए जेलका प्रस्ताव ही एक हथियार है। आप सम बल नहीं और मेघ सम जल नहीं, इस कहावतके अनुसार हममें कितना पानी है, इसपर ही सब कुछ निर्भर करता है। जिस रास्तेसे हम आ रहे हैं, उस रास्तेपर चलते हुए भी हम जेलके प्रस्तावपर आ जाते हैं। वह प्रस्ताव इतना खरा और लाभदायक है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-५-१९०७