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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


तुम जानते हो कि टीकेके निशानोंका क्या उपचार करना चाहिए। यदि नहीं, तो तुम्हें डॉक्टर त्रिभुवनकी पुस्तक देखनी चाहिए। मेरा विश्वास है कि यह पुस्तक तुम्हारे पास है।

निर्देशिका के लिए मैं यहाँ नाम प्राप्त करनेकी चेष्टा करूँगा। स्टैंडर्टनके श्री ई॰ इब्राहीमका विज्ञापन तुम निकाल सकते हो। रकमकी वसूलीके बारेमें मुझे निराशा नहीं है। मुझे खुशी है कि तुमने श्री उमरको उनके लेखोंके बारेमें लिख दिया है। तुम उन्हें फिर लिख सकते हो और यदि उन्हें और प्रतियोंकी आवश्यकता हो तो भेजने की बात कह सकते हो।

तुम्हारा शुभचिन्तक,
मो॰ क॰ गांधी

[पुनश्च :]
मैं थोड़ी-सी सामग्री आज भेज रहा हूँ।[१]
टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस॰ एन॰ ४७५१) से।

४७०. एक और दक्षिण आफ्रिकी भारतीय बैरिस्टर

श्री जोज़ेफ़ रायप्पनके कैम्ब्रिजके स्नातक बननेपर हमें उनको और उनके रिश्तेदारोंको बधाई देनेका अवसर मिला था। अब श्री रायप्पनके बैरिस्टरीकी अन्तिम परीक्षा पास कर लेनेपर उनको बधाई देते हुए हमें और भी खुशी हो रही है। अब वे किसी भी दिन हमारे बीच हो सकते हैं। उनके आ जानेसे यहाँ वकालत करनेवाले भारतीय बैरिस्टरोंकी संख्या चार हो जायेगी। उन्होंने जो समुचित शिक्षा पाई है उसकी उपयोगिताका मापदण्ड हमारी रायमें केवल यह देखना है कि वे उसका प्रयोग अपने देशवासियोंकी उन्नति के लिए कहाँतक करते हैं। संसार-भरके देशोंमें कदाचित् भारतको आज अपनी सीमाके भीतर और बाहर, सर्वत्र अपने पुत्रोंकी प्रतिभाकी सबसे ज्यादा जरूरत है। और हमारा मत है कि अपनी उदार शिक्षाका इस प्रकार सार्वजनिक उपयोग करनेसे पहले ऐसे प्रत्येक भारतीयको गरीबीका जीवन स्वेच्छापूर्वक अपनाना पड़ेगा। वास्तवमें, इस बारेमें, हमें ऐसा लगता है कि क्या यह हर आदमीका फर्ज नहीं है कि वह अपनी निजी आर्थिक महत्त्वाकांक्षाओंको सीमित करे। तो भी भले ही महत्तर प्रश्नको पूरी तरह साबित किया जा सके या नहीं, यह लघु बात तो, जिसे हम निर्धारित कर चुके हैं, अकाट्य है। दक्षिण आफ्रिकामें अपने देशवासियोंके लिए साधारण नागरिक अधिकार हासिल करनेके अलावा श्री रायप्पन जैसे भारतीय आन्तरिक व सामाजिक सुधारोंके लिए बहुत-कुछ लाभदायक और शान्त कार्य कर सकते हैं। हम उनके सामने स्वर्गीय मनमोहन घोष और स्वर्गीय श्री कालीचरण बनर्जीके[२] आत्मत्यागका उदाहरण रखते हैं। दोनों ही प्रतिभावान वकील थे। उन्होंने अपनी कानूनी योग्यता ही नहीं, अपनी सम्पत्तिको भी देशवासियोंके हवाले कर दिया था।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १८-५-१९०७
  1. यह पंक्ति गांधीजीने गुजरातीमें हाथसे लिखी है।
  2. भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनके एक अग्रणी।