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४६७. तार : द॰ आ॰ ब्रि॰ भा॰ समितिको[१]

जोहानिसबर्ग
मई १४, १९०७

[सेवामें

दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समिति

लन्दन]

कुछ मामलोंमें अँगुलियोंके निशान माँगे जाते हैं। कानून अभी 'गज़ट' में नहीं छपा। अँगुलियोंकी निशानियोंका विषय केवल एक संयोग। मूल आपत्ति अनिवार्य पंजीयन और वर्गभेदपर। नरम कायदे इलाज नहीं। कानूनकी मंसूखी जरूरी। संघर्ष केवल पंजीयनसे अधिक व्यापक। हमारा ऐच्छिक पंजीयनका प्रस्ताव अब भी बरकरार। बहुत बड़ा बहुमत अनिवार्य पंजीयनके सामने झुकनेके बजाय जेलके लिए तैयार।

[बिआस]

[अंग्रेजीसे]
कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स : सी॰ ओ॰ २९१/१२२
 

४६८. पत्र : छगनलाल गांधीको

जोहानिसबर्ग
मई १६, १९०७

प्रिय छगनलाल,

मैं जस्टिन सनातन धर्म सभाका आर्डर इस पत्रके साथ नत्थी कर रहा हूँ। हिन्दीके पर्याय अंग्रेजी और गुजरातीमें भी दे देना। पत्रोंके कागज कलापूर्ण दिखाई दें, इसके लिए तुम्हें अपनी विवेक-बुद्धिसे काम लेना होगा कि वे किस प्रकार छापे जायें। मेरी रायमें तुम अंग्रेजी धनुषाकार रख सकते हो और इस चापके नीचे हिन्दी और गुजराती पर्याय समानाअन्तर स्तम्भों में दे सकते हो। यह सभाके नामके बारेमें हुआ। पता तीनों भाषाओंमें एकके बाद एक दिया जाये। सबसे ऊपर गूढ़ार्थ बोधक अक्षर "ॐ" केवल हिन्दीमें रखा जा सकता है। यह रूलदार कागजपर छपना चाहिए; ५०० फुलस्केपपर और ५०० बैंक पेपरपर। मैंने उनसे कहा है कि पूरे आर्डरके कोई २५ शिलिंग होंगे। परन्तु यदि अधिक हों तो होने दो। सभाको बॉक्स ३३, जस्टिनके पतेपर जब चिट्ठियोंके कागज भेजो तभी अपना बिल भी भेज देना। पता छापने में तुम्हें बॉक्स नम्बर नहीं देना है।

मैंने उस्मान अहमदको लिखा है। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' का उद्धरण मेरे पास नहीं है, क्योंकि मैंने उसे लन्दन भेज दिया है। जोहानिसबर्गके मलायी डच बोलते जरूर हैं, वैसी ही-

  1. मई २१ को इस तारकी एक प्रति रिच द्वारा उपनिवेश कार्यालयको भी प्रेषित कर दी गई थी।