पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/५२७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

४६६. पत्र : छगनलाल गांधीको

[जोहानिसबर्ग]
रविवार, मई १२, १९०७

{left|चि॰ छगनलाल,}} तुम्हें बहुत लम्बा पत्र लिखनेका इरादा था, किन्तु रेलगाड़ीमें सिर इतना भारी रहा कि कुछ भी नहीं लिख सका। कल भी ऐसी ही स्थिति थी और आज भी लगभग वैसी ही है। इस वक्त डर्बनमें जो मेहनत हुई उससे तबीयतको बड़ा धक्का लगा जान पड़ता है। फिर भी जितना बने उतना आराम लेकर, मिट्टी इत्यादिके उपचार करके स्वस्थ होनेका विश्वास है।

आज कुछ सामग्री भेज रहा हूँ। रातको और लिखने या बोलकर लिखानेका इरादा करता हूँ। मैंने तलपटके बारेमें सुना तो मेरे मनमें विचार आया कि ठक्करको उसके बिना माँगे तरक्की दे देना आवश्यक और कर्तव्य है। मैं मानता हूँ कि वह हमारे लिए उपयोगी आदमी है। उसमें यद्यपि कुछ कुटेवें हैं, फिर भी स्वदेशाभिमानकी टेक और ब्रह्मचर्य, ये दो गुण दृढ़ हैं। उसका काम कुल मिलाकर अच्छा है। इसलिए मेरी खास सलाह है कि उसे हम तुरन्त तरक्की दें। चि॰ मगनलालके साथ बात करते समय मैंने एक पौंडका विचार किया था। किन्तु, फिलहाल तुरन्त आधा पौंड दिया जाये तो भी ठीक है। मगनलाल मुझसे कहते थे कि कुमारी वेस्टको भी तरक्की दी जाये। यह बात भी मुझे बहुत ठीक लगती है। वेस्टके मनमें आये, उससे पहले तुम सब इसपर विचार करो, यह बहुत उचित जान पड़ता है। इन दोनों बातोंको तुरन्त अमल में लानेकी मेरी सलाह है। रस्किनकी पुस्तक[१] तुम भी पढ़ लेना। आनन्दलाल और मणिलालको पढ़ानेकी पद्धतिपर विचार करके हमेशा सुधार करते रहना। दादा सेठने बड़े तख्तेकी माँग की है, सो दे देना। मैंने कल और प्रतियाँ तुरन्त ही भेजने के लिए लिखा है,[२] सो भेज दी होंगी। चि॰ हेमचन्द अधिकसे-अधिक जून महीनेके अन्तमें जा सकेगा, ऐसी सम्भावना है। डेलागोआ-बेके रास्तेसे जानेका विचार करता है। डेलागोआ-बेमें जो आदमी हमारे लिए काम करता है, उसका नाम और पता भेजना। हिन्दी तथा तमिल पुस्तकोंकी सूची अभीतक नहीं मिली। उमर सेठने २५ प्रतियाँ भेजी होंगी। जगमोहनदासको[३] तीन प्रतियाँ चिह्न लगाकर भेजना। उमर सेठको और भी प्रतियोंकी जरूरत हो तो पूछ लेना। उन्हें विनयपूर्वक लिखना कि २५ प्रतियाँ छापाखानेकी तरफसे भेंट हैं। फोक्सरस्टके सार्वजनिक वाचनालयों में भेंटकी प्रति हमेशा भेजते रहना। चि॰ जयशंकरको भारतीय नाम-निर्देशिका (इंडियन डायरेक्टरी) में नाम सम्मिलित करने के लिए लिखता हूँ।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रतिकी फोटो नकल (एस॰ एन॰ ४७४३) से।
  1. अन्टु दिस लास्ट।
  2. यह पत्र उपलब्ध नहीं है।
  3. कल्याणदासके पिता। ये प्रतियाँ कदाचित् इंडियन ओपिनियनके मई ११, १९०७ के अंककी थीं, जिसमें गांधीजीने कल्याणदासपर एक लेख लिखा था।