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हेजाज रेल्वे : कुछ जानने योग्य समाचार

माननीय सुलतान सीरियाके पाशाओंके अधीन एक कैदीके समान यीलडीज कीओस्क[१] में रहते हैं। माननीय सुलतान स्वयं भोले मुसलमान हैं। इसलिए हेजाज रेलवेकी बात उनके सामने पेश हुई तो उन्होंने उसे पसन्द किया। सबको लाभ हो, इस इच्छासे उन्होंने यह कहा कि जिद्दा और याम्बो इन दोनों बन्दरगाहोंसे मदीना शरीफ और मक्का शरीफ तक लाइन ले जाई जाये। किन्तु माननीय सुलतानकी सूचना स्वीकृत नहीं हुई। इज्जत पाशाने यह समझाया कि यदि जिद्दा होकर रेल बनेगी तो अंग्रेज लोग उसका लाभ लेनेसे नहीं चूकेंगे। वे अपने आदमीको खलीफा बनायेंगे। इज्जत पाशाने अपनी तैयारी कर रखी थी। कुछ जमीन भी खरीदी थी। शेख अबूहुदाकी उन्हें मदद थी। इसलिए दमिश्कसे मदीना शरीफ लाइन ले जानेका निर्णय हुआ।

दमिश्कसे मदीना शरीफ

इस लाइनकी लम्बाई लगभग १,६०० मील है। इसमें से ४५० मीलका फासला पूरा हो गया है। गत वर्ष इसके द्वारा केवल ६१,९०० पौंड आय हुई थी। रकम प्राप्तिके लिए बहुत मेहनत की जाती है, किन्तु इस्तम्बूलके लोगोंको इज्जत पाशापर विश्वास नहीं है। इसलिए कोई पैसे नहीं देता। और यद्यपि इसमें लगानेके लिए सब अफसरोंको दस दिनका वेतन देना पड़ता है और सरकारी विभागके प्रत्येक पत्रपर रेलवेके लिए दो पेनी चन्दा वसूल किया जाता है, तो भी भोले-भाले लोगोंके मनपर प्रभाव डालकर जो पैसा वसूल किया जाता है उसपर सारी बातका दारोमदार है। सुना गया है कि इज्जत पाशाने बहुत पैसा बटोर लिया है। जो माल खरीदा जाता है उसपर वे अपना निजी कमीशन ले रहे हैं। कमीशनके रूपमें एक अमेरिकी पेढ़ीको उन्हें ३,००० पौंड देने पड़े।

इस रेलके पहले भागका १९०१ में आरम्भ किया गया था। फिर भी अबतक पाँचवाँ भाग भी पूरा नहीं हुआ है। जहाँ रेलगाड़ी चल रही है वहाँ मरम्मतका काम नहीं किया जा रहा है। और पटरियाँ हलके प्रकारकी होनेके कारण आजसे ही इस सारे काममें खराबियाँ दिखाई दे रही हैं। भारत और चीनसे आनेवाले मुसलमानोंके लिए यह लाइन सर्वथा अनुपयोगी है। हैजाज रेलवेका उपयोग दूसरे भी कम ही लोग कर रहे हैं, क्योंकि इस लाइनपर चलनेका खतरा कोई भी अपने सिर लेना नहीं चाहता।

भारतीय शिष्टमण्डल

कुछ समय पहले विलायतके भारतीय विद्यार्थियोंका एक शिष्टमण्डल चन्दा लेकर [इस्तम्बूल] गया था। माननीय सुलतानने उसका अच्छा स्वागत किया था। किन्तु उन विद्यार्थियोंको उनकी इच्छाके बावजूद दमिश्क जाने नहीं दिया गया था। उनकी गतिविधिपर गुप्तचरोंकी निगरानी रहती थी। और यद्यपि उन्हें उस्मानिया-पदक दिये गये थे और भली भाँति सम्मानित किया गया था, फिर भी पाशा लोग डर रहे थे। माननीय सुलतानकी सेवामें कुछ भारतीय मुसलमान भी हैं। परन्तु उनपर कम भरोसा रखा जाता है; क्योंकि धर्मके नामपर पाशा लोग ठगकर खाते हैं और इस पोलका वे भण्डाफोड़ होने देना नहीं चाहते।

  1. तुर्की के सुलतानका प्रासाद।