- कभी भूल में नहीं पड़ता। उसी रास्तेपर चलकर मैं कौमकी सेवा करता आया हूँ और, आशा है, करता रहूँगा।
इंडियन ओपिनियन, ११-५-१९०७
४६३. जोहानिसबर्गको चिट्ठी
"महामारी"
भारतीय समाजको इस समय मानो महामारीने आ घेरा है। पिछला साप्ताहिक पत्र जब मैंने रवाना कर दिया तब शुक्रवारको तार आया कि बड़ी सरकारने भारतीयों की गुलामीका कानून मंजूर कर लिया है। देखें, हमारे आगेके शुक्रवार क्या देनेवाले हैं? इस प्रकार सब पूछने लगे हैं। किन्तु स्वाभिमानी भारतीय ऐसे प्रश्न के साथ तुरन्त जाग्रत होकर कहते हैं कि यह कानून गुलामी देनेवाला, नहीं बल्कि भारतीयोंकी गुलामीकी बेड़ियाँ काटने-वाला है; क्योंकि हमें इसे स्वीकार न करके जेल जाना है। इस विचारसे इस कानूनका पास हो जाना वरदान ही समझना चाहिए।
'स्टार' से विवाद
जब दिया बुझनेवाला होता है उस समय उसका प्रकाश तेज हो जाता है। इसी प्रकार, कानून पास होने को था कि इतने ही में 'स्टार' के स्तम्भों में द्वंद्व युद्ध शुरू हो गया। 'स्टार 'ने लोगोंको भारतीयोंके विरुद्ध भड़कानेवाला लेख लिखा। उसका श्री गांधीने जवाब[१] दिया। बादमें वे 'स्टार' के सम्पादकसे मिले और उससे बहुत देर तक बातचीत की। उसके फलस्वरूप 'स्टार' ने दूसरा लेख लिखा। उस लेखको यद्यपि बहुत विवेकपूर्ण माना जा सकता है फिर भी उसने विवाद समाप्त नहीं किया। और लिखा कि भारतीय समाज चाहता है कि उसपर भरोसा रखकर काम लिया जाये, सो नहीं हो सकता। इसलिए श्री गांधीने फिर लिखा है[२] कि भारतीय समाजपर हमेशा विश्वास रखने की कोई बात नहीं है। सिर्फ एक ही बार, और वह भी कुछ समयके लिए ही, भरोसा रखनेकी बात है। इसके अलावा और भी बहुत-कुछ लिखा है। किन्तु इस बार उस सबका तर्जुमा देनेके लिए 'इंडियन ओपिनियन' में जगह भी नहीं। इसलिए जिन्हें बहुत जिज्ञासा हो उन्हें मेरी सलाह है कि वे उन सब लेखोंको अंग्रेजी विभागमें लें। क्योंकि वे सब लेख जानने योग्य और अच्छे हैं। उनमें इस बातका स्पष्ट चित्रण है कि गोरों और भारतीयोंके बीच किस प्रकारकी लड़ाई चल रही है और उसका क्या अर्थ है। उनसे यह साफ दिखाई दे सकता है कि भारतीय समाज जब अपनी प्रतिष्ठाकी रक्षा करना चाहता है, तब अंग्रेज कहते हैं कि भारतीय हमें पछाड़ना चाहते हैं। इससे यह भी जाहिर हो जाता है कि 'स्टार' ने जो विवाद उठाया था वह स्थानीय सरकारकी ओरसे और उसकी मर्जी से