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४६०. उमर हाजी आमद झवेरी
संक्षिप्त जीवन-वृत्तान्त

श्री उमर हाजी झवेरीका जो सम्मान[१] किया गया उसका संक्षिप्त विवरण हम इस अंक में दे रहे हैं। उनका कार्य-कलाप जाननेके लिए हमारे पाठक उत्कण्ठित होंगे, ऐसा समझकर उनका जीवन-वृत्तान्त नीचे दे रहे हैं।

श्री उमर झवेरीका जन्म १८७२ में पोरबन्दरमें हुआ था। १२ वर्षकी उम्र में वे अपने भाई स्वर्गीय एवं प्रख्यात श्री अबूबकर झवेरीके[२] साथ आफ्रिकाके लिए रवाना हुए थे। जहाजमें ही उन्होंने पढ़ना शुरू किया और गुजराती सीखी। डर्बनमें सरकारी शालामें एवं घरपर ४ वर्ष तक पढ़ाई की। सन् १८८७ में श्री अबूबकर गुजर गये, इसलिए सारा बोझ श्री उमर झवेरीपर पड़ा। १८९० में उन्होंने अपने संरक्षक श्री अब्दुल्ला हाजी आमदजीकी पेढ़ीमें नौकरी की। उसके बाद उन्होंने अपनी अरबी-फारसी पढ़नेकी हवस थोड़ी-बहुत पूरी की। १८९७ में उन्होंने पहले-पहल सार्वजनिक काममें भाग लिया और डर्बन अंजुमन-ए-इस्लाम के अवैतनिक संयुक्त मन्त्री नियुक्त हुए। श्री उमरको चूँकि खेतीका शौक था और पोरबन्दरमें चूंकि मेवेकी कमी थी, इसलिए उन्होंने मेवा पैदा करनेका प्रयोग किया। उसीके फलस्वरूप आज पोरबन्दरमें किसी-किसी प्रकारके मेवे बहुत बड़ी मात्रामें मिल सकते हैं। १९०४ में उन्होंने छः महीने तक मित्र, इटली, स्विट्ज़रलैंड, फ्रांस, इंग्लैंड तथा अमेरिकाकी यात्रा करके अमूल्य अनुभव प्राप्त किया।[३] इस यात्रामें एक वैरिस्टर उनके साथ विशेष रूपसे रहा। यह यात्रा अध्ययनके लिए थी।

लन्दनमें श्री दादाभाई नौरोजी, सर मंचरजी भावनगरी वगैरह सज्जनोंसे मिलकर वे उसी वर्ष डर्बन वापस आये और उन्हें श्री आदमजी मियाँखाँके साथ नेटाल भारतीय कांग्रेसका अवैतनिक संयुक्त मन्त्री बनाया गया। तबसे आजतक उन्होंने जो काम किया है उससे भारतीय समाज परिचित है। उनका पैसा, उनके नौकर, उनका घर, उनका वक्त, और उनकी शिक्षा—सबका भारतीय समाजको पूरा लाभ मिला है। जब ट्रान्सवाल शिष्टमण्डल विलायत गया था तब परवाना कानून के सम्बन्धमें जो लड़ाई की गई उसमें श्री उमर झवेरीने श्री आँगलियाके साथ रहकर बहुत मेहनत की। मेमन समितिकी स्थापना करनेमें श्री उमर अग्रगामी थे। डर्बन पुस्तकालयको उनकी ओरसे बहुत-सी पुस्तकें भेंटमें मिली हैं। वे स्वयं उस पुस्तकालय में बहुधा उपस्थित रहते हैं। उनका स्वभाव बहुत ही प्रेमिल है, इसलिए भारतीय समाजमें होनेवाले झगड़ोंको सदा घरमें ही निबटानेका उनका प्रयत्न रहा है। उनकी सचाईके प्रति लोगोंका इतना ऊँचा खयाल रहा है कि उनके पास बहुत-से मुख्त्यार-पत्र रहते हैं। इस सारे काममें उन्हें और भी ज्यादा शिक्षाकी आवश्यकता महसूस हुई और उन्होंने मैट्रिककी परीक्षा पास करके बैरिस्टर बननेका इरादा किया है। उनकी नम्रता और सादगीका एक उदाहरण यह है कि अपने घरमें फुर्सत के समयमें वे अपने नौकरों और दूसरे छोटे बालकोंको

  1. देखिए "उमर हाजी आमद झवेरीको विदाई", पृष्ठ ४७५-८१।
  2. अबूबकर आमद झवेरी।
  3. देखिए खण्ड ४, पृष्ठ २९३।