४३९. पत्र : छगनलाल गांधीको
[जोहानिसबर्ग]
रविवार, [अप्रैल २१, १९०७][१]
आज डाक आई। उसमें तुम्हारी काकी लिखती है कि तुम्हारे यहाँ फिर लड़का हुआ है और जच्चा-बच्चा दोनों मजे में हैं। यदि बने तो दोनों बच्चोंका वजन मुझे चाहिए। बिछावन इत्यादि साफ रखनेकी मेरी खास सलाह है। छुआछूतके निरर्थक और दुष्ट वहमोंको बीचमें मत आने देना। झोलीके बदले पालना अधिक पसन्द करने योग्य है। जैसा तन्दुरुस्त बच्चा श्रीमती पोलकका है, वैसा ही तुम दोनोंका हो, मैं यही चाहता हूँ।
फिट्ज़रल्डने रणजीतसिंहजीकी गद्दीनशीनीके समय जो भाषण पढ़ा, उसका और उसके जवाबका 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से अनुवाद करने के लिए ठक्करसे कहना। बने तो उसे अंग्रेजीमें भी देना अच्छा है। एक अंकमें हमारे सम्बन्ध में लेख है, वह प्रति लेकर मुझे भेजना। मैं लेना भूल गया हूँ।
अब वहाँ क्या हाल है, सो लिखना। तुम्हारे मनकी स्थिति कैसी है? श्री वेस्टके साथ कैसी बन रही है? अपने [इंग्लैंड] जानेके बारेमें तुमने क्या सोचा?
मोहनदासके आशीर्वाद
आज गुजरातीकी और सामग्री भेज रहा हूँ। कुछ पिछले हफ्तेकी बची होगी। कुछ शनिवारको, यानी कल, भेजी थी;[२] और फिर कल भेजनेकी उम्मीद करता हूँ। तुमने मुझे 'मराठा' भेजा है, यह ठीक किया। किन्तु जैसा हमारे बीच तय हुआ है उसके मुताबिक तुम्हींको उसका अनुवाद करनेका काम ठक्करको सौंपना चाहिए था। यदि तुम ऐसा ही करते हो, और इसका अनुवाद खास मेरी भाषामें करने के लिए भेजा हो, तो मुझे कुछ नहीं कहना है।
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रतिकी फोटो नकल (एस॰ एन॰ ४७३७) से।