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४३५. मित्रमें परिवर्तन

लॉड कॉमरने मिस्रके मुख्य अधिकारीका पद छोड़ दिया है। उसका कारण यह बताया है कि उनकी तबीयत खराब है। लॉर्ड क्रॉमरने मिस्रमें बहुत-से सुधार किये हैं, मिस्रवासियोंको शिक्षा दी और वे एक राष्ट्र हैं, ऐसा भान कराया। अब वही जनता क्रॉमरका विरोध कर रही है; क्योंकि लॉर्ड क्रॉमर अनुचित सत्ता भोगना चाहते हैं। उनकी जगह सर एल्डन गॉर्टको नियुक्त किया गया है। कहा जाता है कि वे लॉर्ड कॉमरकी नीतिका निर्वाह करेंगे। फिर भी अंग्रेजी उदारदलीय अखबार मानते हैं और चाहते हैं कि मिस्रवासियोंको और भी ज्यादा अधिकार दिये जाने चाहिए। मिस्रके अखबारोंको भी यही आशा है कि लॉर्ड क्रॉमरके तबादले जनताको विशेष अधिकार दिये जायेंगे। इतना तो दिखाई देता ही है कि आजके उदारदलीय संसद-सदस्य चाहते हैं कि सारे ब्रिटिश साम्राज्य में प्रजाके अधिकारोंमें वृद्धि हो।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २०-४-१९०७
 

४३६. जोहानिसबर्ग की चिट्ठी
उपनिवेश-सचिवका जवाब

शिष्टमण्डलका हाल मैं दे चुका हूँ। उसका जो जवाब[१] श्री स्मट्सने भेजा है वह निम्नानुसार है :

१. आपके ३० तारीख के पत्रके लिए तथा बादमें भारतीय शिष्टमण्डलसे जो भेंट हुई थी और उसमें एशियाई कानून संशोधन अध्यादेश और दूसरे विषयोंपर जो बातें मेरे सामने पेश की गई थीं, उन सबके लिए मैं भारतीय समाजका आभारी हूँ। शिष्टमण्डलने नये कानूनके विरोध में आपत्ति करते हुए कहा था कि यह कानून भारतीय समाजकी प्रतिष्ठा गिरानेवाला है और जब भारतीय समाज आप ही नया पंजीयन करवानेको तैयार है तब फिर कानूनकी कोई जरूरत नहीं रह जाती। अतः अनिवार्य पंजीयन कानून अपमानजनक है। शिष्टमण्डलने यह भी कहा था कि १८८५के कानूनमें जमीन के सम्बन्धमें [भारतीयोंको] जो कठिनाई है वह दूर नहीं होती तथा उपनिवेशमें कुछ समय के लिए रहनेवालेको जो भी कठिनाई होती है वह नहीं होनी चाहिए।
२. इन सारी बातोंका पूरी तरहसे विचार कर लिया गया है। और मुझे कहना चाहिए कि नये कानूनकी १७वीं धारामें मुद्दती अनुमतिपत्र देनेकी व्यवस्था की गई है।
  1. नये एशियाई कानून संशोधन अध्यादेश के सम्बन्धमें जनरल स्मट्ससे जो भारतीय शिष्टमण्डल मिला था, उससे उन्होंने लिखित उत्तर देने का वादा किया था। देखिए "जोहानिसवर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ४३२-५।