४३०. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
श्री स्मट्सके समक्ष शिष्टमण्डल
मैं पिछले सप्ताह लिख चुका हूँ कि शिष्टमण्डल श्री स्मट्सके पास जाकर आम सभाके[१] निर्णय पेश करेगा। उसके अनुसार श्री स्मट्सने गुरुवार, ४ तारीखको शिष्टमण्डलको मिलनेका समय दिया था। श्री अब्दुल गनी, श्री कुवाड़िया, श्री ईसप मियाँ, श्री हाजी वजीर अली, श्री मूनलाइट तथा श्री गांधी महाप्रबन्धकसे विशेष प्रबन्ध करा कर ८-३५ की एक्सप्रेससे जोहानिसबर्ग से प्रिटोरिया गये। प्रिटोरियासे श्री मुहम्मद हाजी जुसब और श्री गौरीशंकर व्यास शामिल हो गये थे। वे सब ठीक १२ बजे उपनिवेश-कार्यालयमें पहुँच गये। श्री चैमने उपस्थित थे
श्री गांधीने स्मट्सको सारी हकीकत कह सुनाई। श्री स्मट्सको याद दिलाया गया कि भारतीय समाज कई बार पंजीयनपत्र ले चुका है। उसकी यह दलील श्री चैमनेकी रिपोर्टके द्वारा सिद्ध होती है और उस रिपोर्टने यह भी बता दिया गया है कि दूसरी दृष्टिसे भी भारतीय समाज विश्वसनीय है। एशियाई कार्यालयके रिश्वत लेनेवाले अधिकारियोंको भारतीय समाजकी मददसे पकड़ लिया गया है। इसलिए इन सारी बातोंका विचार करके इस बार सरकारको आम सभा के दूसरे प्रस्ताव के अनुसार स्वेच्छया पंजीयन सम्बन्धी निवेदन मान्य करना चाहिए।
उसके बाद हाजी वजीर अलीने समर्थन में दलीलें दीं और भारतीय समाजकी वफादारीकी ओर ध्यान आकर्षित किया। श्री अब्दुल गनी तथा ईसप मियाँने भी दलीलें पेश कीं और कहा कि अब भी नौकरों वगैरहकी तकलीफें होती रहती हैं।
श्री स्मट्सने पौन घंटे से भी अधिक समय तक ये सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनीं। अन्तमें उत्तर दिया कि उन्होंने स्वयं भी कई नई-नई बातें सुनी हैं। अतः उस सम्बन्धमें जाँच-पड़ताल करनेके बाद लिखित उत्तर देंगे। इससे शिष्टमण्डलको यह न समझ लेना चाहिए कि सरकार दूसरा प्रस्ताव स्वीकार कर ही लेगी।
इस उत्तरका अर्थ यह हुआ कि जव शिष्टमण्डल लॉर्ड एलगिनके पास गया था तब जो परिस्थिति थी, वही आज आ गई है। और श्री स्मट्सको यदि कोई तटस्थ व्यक्ति ठीक तरहसे समझा सके तो दूसरे प्रस्तावका असर पड़ सकता है। इससे श्री पोलक शुक्रवारको श्री ग्रेग-रोवस्कीके पास गये थे। उन्होंने दिलासा दिया है। बहुत-कुछ श्री चैमनेपर निर्भर जान पड़ता है। यदि वे कह दें कि भारतीय बिना कानूनके स्वयं पंजीयन करवा सकेंगे तो बहुत सम्भव है। कि श्री स्मट्स अर्जी मंजूर कर लें। जान पड़ता है कि श्री पोलकने प्रिटोरियामें बहुत अच्छा काम किया है। शुक्रवारका पूरा दिन उन्होंने लोगों से मिलने में बिताया। 'प्रिटोरिया न्यूज' और 'ट्रान्सवाल ऐडवर्टाइज़र' के सम्पादकोंसे वे स्वयं मिले तथा श्री डी॰ वेटसे भी मिले। उन सबको कुछ भी मालूम नहीं था। किन्तु अब वे जानने लगे हैं। उन्होंने यथासम्भव सहायता करने को भी कहा है।
श्री चैमनेकी रिपोर्ट
श्री चैमनेकी सन् १९०६ की रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। उसमें उन्होंने कहा है कि ३१ दिसम्बर १९०५ तक एशियाइयोंको १२,८९९ अनुमतिपत्र दिये गये थे। वे अनुमतिपत्र उन एशियाइयोंको
- ↑ देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ४०७।