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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जो न्यायिक जाँच की जानेपर सही साबित नहीं होंगे। ये केवल बिना किसी यथार्थ तथ्यके सहारे व्यक्त किये गये हठपूर्ण उद्गार हैं; और यद्यपि, जैसा कि मैंने स्पष्ट कर दिया है, उनके जबरदस्त संख्यामें अवैध प्रवेश सम्बन्धी कथनके आधारका भी आसानीसे खण्डन किया जा सकता है, तथापि उस विवरणमें यह सिद्ध करने योग्य तो कोई बात नहीं है कि अवैध प्रवेश अथवा जबरदस्त संख्यामें अवैध प्रवेशको भारतीय समाजकी ओरसे किसी भी प्रकारका बढ़ावा दिया गया हो। अवैध प्रवेश बिलकुल नहीं होता, ऐसा कभी किसीने नहीं कहा। किन्तु बड़े पैमानेपर उनका आना कभी स्वीकार नहीं किया गया। और श्री चैमनेका विवरण यदि जैसाका-तैसा ले लिया जाये, तो भी मैंने जिन स्वाभाविक त्रुटियोंकी ओर ध्यान आकर्षित किया है उनपर विचार किये बिना भी वह ब्रिटिश भारतीयोंके पक्षको पूरी तरह उचित सिद्ध करता है। मैं यहाँ आपके जोहानिसबर्ग के सहयोगी 'रैंड डेली मेल' का उल्लेख भी कर दूँ जिसे स्वयं इस विवरणको पढ़नेका अवसर मिला है। वह आपके निर्णयसे बिलकुल विपरीत निर्णयपर पहुँचा है। फिर, उसने पूछा है कि क्या नया विधेयक जिस हद तक अवैध प्रवेश सिद्ध हुए हैं, उस हद तक उनका कोई निराकरण प्रस्तुत कर पाता है?

आपका इत्यादि,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
नेटाल ऐडवर्टाइज़र, ११-४-१९०७
 

४२३. चैमनेकी रिपोर्ट

श्री चैमनेकी रिपोर्टका सारांश हमारे जोहानिसबर्ग के संवाददाताने भेजा है। वह बहुत पठनीय है। रिपोर्टसे तीन बातें सिद्ध होती हैं। वे हैं : भारतीय समाजके प्रति श्री चैमनेका तिरस्कार, श्री चैमनेकी न्यायबुद्धिकी त्रुटि और भारतीय समाज द्वारा बताई गई हकीकतोंकी प्रामाणिकता।

श्री चैमनेका द्वेष प्रत्येक पंक्ति में दीख पड़ता है। उन्होंने राईका पर्वत बनाया है, और कहीं-कहीं तो बेबुनियाद बातें लिखी हैं। उन्होंने लिखा है कि बहुतेरे लोग बड़ी रकम लेकर पुराने पंजीयनपत्र बेच देते हैं। किन्तु उसका प्रमाण वे कुछ भी नहीं दे पाये। उन्होंने ८७६ लोगोंके अनुमतिपत्रके बिना प्रविष्ट होने की बात लिखी है, परन्तु वह किस प्रकार, यह जानकारी नहीं दी। उन्हें न्यायाधीशके अधिकार नहीं हैं। इसलिए किसीके भी सम्बन्धमें वे ऐसा नहीं कह सकते कि उसने बिना अधिकार प्रवेश किया है। वे इतना ही कह सकते हैं कि लोग अनुमति-पत्रके बिना आये होंगे, ऐसा उन्हें सन्देह है। फिर भी बिना अनुमतिपत्रके और बिना अधिकारके वे आये ही हैं, उनका यह कहना तो द्वेष और सदोष न्यायबुद्धि दोनों ही प्रकट करता है। उन्होंने यह भी कहा है कि बहुत से लोग डर्बनसे लौट गये, और जो लोग चोरीसे आये हैं तथा पकड़े गये हैं वे पहले ८७६ से अलग हैं। किन्तु इसमें से एक भी बातका सम्बन्ध अवैध रूपसे आनेवाले लोगोंकी संख्या बताने से नहीं है। फिर भी उन्होंने बढ़ा-चढ़ाकर कहने के लिए ये बातें सामने लायी हैं।