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ट्रान्सवाल एशियाई अध्यादेश


२. वह अनुमतिपत्र आफ्रिकी सिपाही अथवा अन्य किसी भी सिपाहीको दिखाना पड़ेगा।

३. अनुमतिपत्र न दिखानेवालेको परवाना नहीं मिलेगा।

४. अनुमतिपत्र दिखानेपर भी किसी व्यक्तिको रात-भर तहखाने में बन्द कर रखनेका पुलिसको अधिकार है।

५. आठ वर्षके बच्चेका भी उसके पिताको पंजीयन कराना होगा; और बच्चेका हुलिया देना होगा।

६. यह सारी मुसीबत झूठे अनुमतिपत्रवालों या बिना अनुमतिपत्रवालोंको नहीं उठानी पड़ेगी। क्योंकि उनको तो ट्रान्सवाल छोड़ना होगा। किन्तु सच्चे अनुमतिपत्रवालोंको यह मुसीबत उठानी है।

७. सभी अधिकारी यह कह चुके हैं कि नये अनुमतिपत्रपर दसों अँगुलियोंकी छाप देनी होगी।

८. हम पहले जो अँगूठेकी निशानी दे चुके हैं उसमें और अब जो कानून बन रहा है इसमें बहुत अन्तर है। तब हमने अँगूठेकी निशानी स्वेच्छासे दी थी, किन्तु उस बातको अब कानून अनिवार्य बना रहा है।

९. हम आजतक जो अँगूठेकी निशानी देते आ रहे हैं वह कानूनकी पुस्तकों में नहीं है, इसलिए उसका असर सार्वत्रिक नहीं होता। परन्तु नये कानूनका असर सभी जगह होगा।

१०. यदि कोई अनजान व्यक्ति इस कानूनको पढ़े तो उसके मनपर प्रभाव पड़ेगा कि यह कानून जिन लोगोंके लिए है, वे चोर, डाकू और ठग होने चाहिए।

११. इस कानून की धाराएँ केवल जरायमपेशा लोगोंपर ही लागू हो सकती हैं।

१२. इस कानूनको पेश करनेका कारण भी यही बताया गया है : भारतीय समाजके प्रमुख लोग गलत तरीकेसे भारतीयोंको ट्रान्सवालमें प्रविष्ट करते हैं, अर्थात् वे गुनहगार हैं।

१३. यह कानून यह प्रश्न पैदा करता है कि भारतीय समाज सम्मानका पात्र है या तुच्छ है।

१४. यदि इस कानूनको भारतीय समाज स्वीकार कर लेता है तो परिणाम यह होगा कि सर मंचरजी भावनगरीके समान भारतीय कहीं ट्रान्सवालमें आयें तो उनसे भी अँगुलियोंवाले प्रवेशपत्र माँगे जायेंगे। इसका उत्तरदायित्व ट्रान्सवालके भारतीयोंपर रहता है।

१५. यह कानून केवल एशियाई लोगोंपर लागू होता है। केप निवासी, काफिर या मलायीपर लागू नहीं होता। यानी ये तीनों जातियाँ भारतीय समाजकी हँसी उड़ा सकेंगी। एक भारतीय किसी मलायी औरतसे शादी करता है तो उसके मलायी सगे-सम्बन्धीसे तो कोई प्रवेशपत्र नहीं माँग सकता किन्तु भारतीयसे हर जगह आफ्रिकी सिपाही "ऊफी पास"[१] कहकर प्रवेशपत्र माँगेंगे। अर्थात् मलायी औरतके मुकाबले भारतीय की स्थिति हलकी रही।

इसी प्रकारके और कारण भी दिये जा सकते हैं । उपर्युक्त कारणोंको खूब अच्छी तरह पढ़कर पाठकको सोचना चाहिए कि ऐसी दुर्दशा भोगने के बजाय क्या जेल अच्छी नहीं है ? इस कायदेके अनुसार प्रवेशपत्र प्राप्त करने में तो, हम मानते हैं, हमेशाकी जेल है। इसके बदले थोड़े दिनों या महीनोंकी जेल भोगना कुछ बुरा नहीं हैं। बल्कि उसमें लाभ और यश है और इस हमेशाकी जेलमें नुकसान व बदनामी है। इसके अतिरिक्त स्मरण रहे कि भारतीय

  1. आपका पास।
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