पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/४२३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

३९४. दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समिति

हम अपने पाठकोंको सलाह देते हैं कि वे श्री रिचका इस सप्ताहका पत्र ध्यान से पढ़ें। श्री रिच और उनके द्वारा विलायतकी समिति जो काम कर रही है, उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। श्री रिच बड़ी उमंग एवं होशियारीके साथ काम चला रहे हैं; और यदि नेटाल नगरपालिका विधेयक रद हो जाये, फ्रीडडॉपके भारतीयोंको हरजाना मिल जाये, तथा नेटाल परवाना कानूनके जुल्मसे आखिरकार राहत मिल जाये तो इस सबका श्रेय श्री रिच और दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समितिको देना चाहिए। समितिके बिना श्री रिचके लिए काम करना सम्भव नहीं है और न श्री रिचके बिना समिति जोर पकड़ सकती है। श्री रिचसे फिक्र और होशियारीमें मुकाबला करनेवाला लन्दनमें आज तो दूसरा कोई नहीं है। सर मंचरजी वगैरह शुभचिन्तक लोग हमारी पूरी सहायता करते हैं। लेकिन उन्हें एक जगह लानेवाला और उनकी निगरानीमें काम करनेवाला मन्त्री न हो तबतक बहुत काम नहीं हो सकता। इन दिनों हमें लगभग प्रति सप्ताह रायटरके तारोंसे पता चलता रहता है कि समिति जागरूक है। पिछले सप्ताहकी खबर है कि आम सभाके निर्णयके आधारपर समितिने लॉर्ड एलगिनको सख्त पत्र लिखे थे। इस सप्ताह हम देखते हैं कि लॉर्ड ऐम्टहिलकी मारफत लार्ड सभामें चर्चा की गई है। लोकसभायें भी हमारे कष्टोंके सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर हुए हैं। यह हमें दूसरी जगह दिये गये विवरण एवं तारोंसे मालूम होगा। यह सब काम समिति और श्री रिचके प्रयत्नोंका फल है। इतनेसे ही साफ मालूम हो जाता है कि वे अथक श्रम कर रहे हैं। समितिको किस प्रकार चालू रखा जा सकता है और वह किस प्रकार ज्यादा काम कर सकती है, इसका उत्तर श्री रिचने दिया है। श्री रिच लिखते हैं कि २५० पौंड एक वर्षके लिए काफी नहीं होंगे। उन्होंने जो हिसाब भेजा है वह हमने दूसरी जगह दिया है। उससे मालूम हो जायेगा कि खर्च किस प्रकार चलता है। श्री रिच स्वयं तीन महीने में २५ पौंड लेते थे, लेकिन उन्हें समितिने ४५ पौंड लेनेकी अनुमति दी है क्योंकि उनका घर खर्च २५ पौंडसे नहीं चलता था। श्री रिचको जो कुछ दिया जाता है वह उनका वेतन नहीं है। श्री रिचका काम बाजार भावसे देखा जाये तो ३० पौंड मासिकसे कमका नहीं होता। किन्तु श्री रिच पैसेके भूखे नहीं हैं। वे पैसेके लिए काम नहीं करते। उनमें लगन है, इसलिए काम करते हैं। यदि उनकी परिस्थिति अनुकूल हो तो वे एक पैसा भी नहीं लें।

समितिके खर्च में हम देखते हैं कि श्री रिचके १८० पौंड, एक वैतनिक सेवकके ५० पौंड तथा किराया ५० पौंड, इस तरह कुल मिलाकर २८० पौंड तो सिर्फ वेतन और किराया हो जाता है। तब इसमें २० पौंड बचे। इतने में समितिका खर्च नहीं चल सकता। इसलिए यदि हम ३०० पौंडमें से बचे हुए ५० पौंड भेज दें तब भी खर्च पूरा नहीं होगा। भारतीय-विरोधी कानून निधि समितिने १०० पौंड और भेजने का निर्णय किया है। हमारे विचारसे हमें विलायत में ५०० पौंड तक खर्च करना बिलकुल जरूरी है। जान पड़ता है, यह खर्च हमें दो-तीन वर्ष तक करना पड़ेगा। यदि फ्रीडडॉर्पके लोगोंको हरजानेकी रकम मिली तो हम उसीमें से ५०० पौंडसे ज्यादा वसूल कर सकते हैं। नेटालमें व्यापारी जम जायें तो उनसे हम सौ गुना पैसा वसूल कर सकते हैं। मलायी बस्तीवालोंपर आक्रमण जारी है। उनका बचाव किया जा सका तो उससे भी मुआवजा मिल सकता है। इसलिए हम सब पाठकोंको विशेष रूपसे सलाह देते