पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/४०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०
सम्पूर्ण गांधी वाङमय

तब, प्रतिबन्ध अपने आपमें विवादका कारण नहीं है?

यही बात है। ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयों और सामान्यतः रंगदार लोगोंके प्रति जो पूर्वग्रह है, उसे हम समझते हैं। इसलिए हमने केप या नेटाल जैसे प्रतिबन्धका सिद्धान्त स्वीकार कर लिया है। गम्भीर विचार-विमर्श के बाद उन सभी उपनिवेशोंने, जिनके सामने ऐसी समस्याएँ हैं, इसी ढंगपर कानून बनाये हैं।

प्रबुद्ध भारतीय दृष्टिकोण

यदि ट्रान्सवालवासियोंका इरादा यहाँ बसे हुए भारतीयोंको उपनिवेशसे भगानेका न हो--और मैं खुद तो मानता हूँ कि नहीं है--तो कोई कारण नहीं कि उन्हें दूसरे उपनिवेशोंके मुकाबले जरा भी ज्यादा ढील दी जाये, या वे स्वयं अपने लिए और अधिक सत्ता चाहें।

क्या भारतीय व्यापारियोंके विरुद्ध काफी आन्दोलन नहीं रहा है?

निःसन्देह हम अक्सर भारतीयोंकी व्यापारिक स्पर्धाके बारेमें सुनते हैं। किन्तु मेरा व्यक्तिगत विचार है कि नगर परिषदों या परवाना-निकायोंका नये व्यापारिक परवानोंपर केप विक्रेता-अधिनियमसे मिलता-जुलता नियन्त्रण रहे। न्यायकी दृष्टिसे सिर्फ इतना जरूरी है कि ऐसा कानून वर्ग-विशेषके लिए न होकर सबपर लागू होनेवाला हो। इसलिए आप देखेंगे कि भारतीय समाज अपनी उपस्थितिपर उठाई गई सभी उचित आपत्तियोंको दूर करनेके लिए पूरी तरह तैयार है। किन्तु ऐसा कर लेनेके बाद, मेरे विचारमें, सभी न्यायप्रिय व्यक्तियों को निश्चित रूपसे यह मान लेना चाहिए कि कमसे कम उन लोगोंको, जो उपनिवेशमें [पहलेसे ही] हैं, आने-जाने, जमीन-जायदाद रखने तथा उक्त विनियमोंके अन्तर्गत व्यापार करनेकी पूर्ण स्वतन्त्रता हो। मैं नहीं सोच सकता कि कोई दक्षिण आफ्रिकी ऐसी व्यवस्थाके खिलाफ कोई आपत्ति उठा सकता है ।

तब, श्री गांधी, क्या यह मान लिया जाये कि इस वक्तव्य द्वारा आपने ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंके मामलेका ही स्पष्टीकरण किया है?

जी हाँ। और चूँकि हमारा विश्वास है कि हमारी स्थितिके सम्बन्धमें बहुत अधिक गलतफहमी है और अतिशयोक्तिसे काम लिया गया है, इसलिए श्री अली और मैं दक्षिण आफ्रिकासे इतनी लम्बी यात्रा करके अधिकारियोंके सामने अपना मामला निष्पक्ष रूपसे पेश करने आये हैं। हम स्थानीय विचारोंसे जहाँतक बने, समझौता करनेके लिए उत्सुक हैं।

आप अभीतक लॉर्ड एलगिनसे नहीं मिले?

अभीतक नहीं; किन्तु सारा प्रबन्ध हो रहा है, और हमें आशा है कि कुछ ही दिनोंमें हम उनसे भेंट करेंगे। हम चाहते हैं कि ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंसे इस प्रश्नपर सहानुभूति रखनेवाले संसदके कुछ ब्रिटिश सदस्य और अन्य प्रमुख व्यक्ति शिष्टमण्डलका नेतृत्व करें और उसका परिचय करायें। मैं 'साउथ आफ्रिका' को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ कि उसने अपने स्तम्भों में हमें अपने विचार रखनेका अवसर दिया है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-११-१९०६