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भेंट: 'साउथ आफ्रिका' को

किन्तु क्या वह मामला एक अपवाद नहीं था?

बिलकुल नहीं। एक दूसरे मामलेमें ग्यारह वर्षसे कम उम्रका एक बच्चा अपने माता-पितासे अलग कर दिया गया था क्योंकि उसपर शक था कि वह किसी दूसरेके अनुमतिपत्रपर[१] ट्रान्सवालमें आया है।

आखिर हुआ क्या?

अभी एक तार आया है कि सर्वोच्च न्यायालयने बच्चेकी सजाको बिलकुल बुरा माना और कहा कि ऐसे मुकदमोसे कानूनका[२] अमल हास्यास्पद हो जायेगा और लोग उसकी अवज्ञा करने लगेंगे।

नये अध्यादेशकी विषय-वस्तु

इसलिए यदि एशियाई कानून संशोधन अध्यादेश, जो इस समय लॉर्ड एलगिनके सामने है, स्वीकार कर लिया गया तो कोई भी आसानीसे समझ सकता है कि ट्रान्सवाल ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थिति कितनी कठिन हो जायेगी।

तब क्या यह कानून इतना असाधारण है ?

सचमुच ऐसा ही है। ब्रिटिश उपनिवेशोंके कानूनके बारे में जो कुछ मैं जानता हूँ, नया अध्यादेश उन सबसे बहुत आगे बढ़ जाता है।

किन्तु उसका कौन-सा भाग आपत्तिजनक है?

मैं बताता हूँ। यह इस खयालसे बहुत ही अपमानजनक है कि उसके द्वारा हर भारतीयको अपनी पद-मर्यादाका खयाल किये बिना अपनी दसों अँगुलियोंकी छाप देनी होगी, और वह पास जो भी सिपाही माँगे उसको दिखाना होगा। सारे भारतीयोंको, मय बालकोंके, इस तरहका या, जैसा कि आठ वर्षसे कम उम्रके बच्चोंके लिए कहा गया है, अस्थायी पंजीयन करवाना होगा।

क्या यह बिलकुल नई व्यवस्था है ?

जी; यह सब बोअर शासनकालमें बिलकुल नहीं था। १८८५ के कानून ३ के प्रशासनमें जब भी कोई कठोर या अन्यायपूर्ण कार्य होता तो उस समय हमें ब्रिटिश संरक्षणका पूरा भरोसा रहता था।

किन्तु यह कानून पहले कानूनका संशोधन ही तो है?

नहीं। इस नये अध्यादेशको संशोधन अध्यादेश कहना गलत है। क्योंकि इसका क्षेत्र १८८५ के कानून ३ के क्षेत्रसे बिलकुल भिन्न है। वह कानून भारतीय व्यापारियोंको केवल एक ही बार ३ पौंड देनेके लिए बाध्य करता है, जब कि नया अध्यादेश ब्रिटिश भारतीयोंके आव्रजनपर पूरा प्रतिबन्ध लगाता है।

तब क्या आपको उस प्रतिबन्धसे आपत्ति है?

नहीं, प्रतिबन्धोंसे हमारा कोई झगड़ा नहीं। किन्तु जैसा मैंने बताया है, उसका तरीका बहुत ही अपमानजनक और बिलकुल अनावश्यक है।

  1. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४६५।
  2. देखिए "ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय",पृष्ठ ११३-१६।