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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सर्वोच्च न्यायालयके फैसलोंके कारण मौजूदा कानूनमें बहुत-सी अड़चनें खड़ी हो गई हैं। इस प्रकार लिखकर उत्तेजना दी जाती है और नई संसदमें अध्यादेश फिरसे पास हो, उसके लिए पहले तजवीज शुरूकी है।

यह साफ है कि उपर्युक्त हकीकत गलत है। तंग अनुमतिपत्र कार्यालय नहीं किया जा रहा है, बल्कि वह खुद कर रहा है। कानूनकी तकलीफ कम होनेके बजाय बढ़ती जा रही है और जब अनुमतिपत्र कार्यालय अपनी मर्यादाका उल्लंघन करता है तब सर्वोच्च न्यायालय हस्तक्षेप करता है। किन्तु हम सब जानते हैं कि उतना काफी नहीं है। उपाय क्या किया जाना चाहिए सो 'इंडियन ओपिनियन' में बतला दिया गया है। लेकिन सबसे बड़ा और अन्तिम उपाय जेल है। जबतक हम यह बात नहीं भूलते तबतक कोई आपत्ति आनेवाली नहीं है। जेलका उपाय किया जाये तो उसके लिए भी पैसेकी बहुत आवश्यकता होगी। इस सम्बन्ध में ब्रिटिश भारतीय संघ और दूसरे सब मण्डलोंको पुरअसर तरीके काम में लाने चाहिए।

मिडिलबर्गकी बस्ती

मिडिलबर्ग की बस्तीके सम्बन्धमें अब वहाँसे समाचार आ गया है। उसके आधारपर संघने टाउन क्लार्कको पत्र लिखकर सूचना देनेका कारण पूछा है। उस सम्बन्ध में जानकारी मिलने के बाद ज्यादा कार्रवाई की जा सकेगी।

श्री कुवाड़ियाका मुकदमा

जोहानिसबर्ग के प्रसिद्ध व्यापारी श्री कुवाड़िया, जो ब्रिटिश भारतीय संघके खजांची हैं, अपने १६ वर्षके लड़केके साथ जोहानिसबर्ग आ रहे थे। लड़केको फोक्सरस्टमें उतार दिया गया; क्योंकि उसके नामसे अनुमतिपत्र नहीं था। उस लड़केके नामसे भी अनुमतिपत्र माँगा गया था, किन्तु कैप्टन फॉउलने इनकार करते हुए कहा था कि कोई रुकावट नहीं होगी। श्री कुवाड़ियाके पास वह पत्र था, फिर भी लड़केको उतार दिया गया। डॉक्टरी प्रमाणमें कहा गया कि लड़के की उम्र १८ वर्षकी है। इससे न्यायाधीशने उसे छोड़ने से इनकार कर दिया। श्री चैमनेके पास सूचना भेजी गई। लेकिन उन्होंने हस्तक्षेप करनेसे इनकार कर दिया। पिछले सोमवार फोक्सरस्टमें मुकदमा चला। न्यायाधीशने उस मुकदमेको प्रमाणके लिए जोहानिसबर्ग भेजने से इनकार कर दिया। इसलिए मुकदमा फिर अगले सोमवारको चलेगा। आखिर वह लड़का छूट जायेगा। लेकिन इस बीच कौड़ी-बराबर न्याय प्राप्त करनेके लिए श्री कुवाडियाको कितनी तकलीफ उठानी पड़ेगी और कितने खर्चमें उतरना होगा। यदि उस लड़केके लिए अनुमतिपत्र माँगते हैं तो कहा जाता है कि उसकी उम्र १६ वर्षसे कम है, इसलिए अनुमतिपत्र नहीं दिया जा सकता; और अनुमतिपत्र न मिलनेसे इतने खर्च में पड़ना पड़ता है। इतनी मुसीबत समझदार आदमीको भोगनी पड़ती है, तब फिर गरीबोंका क्या पूछना?

एशियाई भोजनगृहका कानून

इस कानूनके विरुद्ध ब्रिटिश भारतीय संघने नगर परिषदको अर्जी[१] भेजी है उसमें लिखा है कि उसका परवाना शुल्क १० पौंड नहीं होना चाहिए; और चूँकि भारतीय समाजके लोग संख्या में कम हैं, इसलिए उनके लिए सख्त कानून बनाने की जरूरत नहीं है।

  1. इस अर्जीका उल्लेख "जोहानिसबर्ग की चिट्ठी", पृष्ठ ३४४-४६ में भी किया गया थ। "पत्र : टाउन-क्लार्कको," पृष्ठ ३३८ भी देखिए।