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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

 

डॉक्टर पोर्टर

जोहानिसबर्ग नगरपरिषद[१] और शहर के सुधारके सम्बन्धमें जो रिपोर्ट डॉक्टर पोर्टरने प्रकाशित की है उसमें से भारतीयोंके सम्बन्धमें की गई टीकाका उद्धरण यहाँ देता हूँ।

चेचक

चेचक के विषय में लिखते हुए डॉ॰ पोर्टर सूचित करते हैं :

सबसे अधिक तकलीफ देनेवाले लोग हैं—एशियाई और सोमाली। यदि कोई एशियाइयोंके घर जाता है तो वे उसका विरोध करते हैं। उन्हें यदि बीमारोंको अलग रखनेके लिए कहा जाये, जिससे उन्हें छूत न लगे, तो वे उसपर भी आपत्ति करते हैं। उन्हें जब देखने के लिए जाते हैं तो वे अपने बीमारोंको टट्टीमें बैठा देते हैं। उनमें एक प्रसिद्ध व्यक्तिको चेचककी बीमारी छिपानेके कारण दण्ड दिया गया। तबसे ये लोग सीधे हो गये और श्री लॉयडकी मदद से फिर ठीक-ठीक खबरें मालूम होने लगीं। चेचककी[२] बीमारीके समय भारतीय समाजके नेताओंकी सहायता उपलब्ध हुई थी।

मलायी बस्ती

बस्ती में १९०५ के नवम्बर महीने में ४,२०० की आबादी थी। उसमें १,६०० भारतीय, ९७० मलायी, ७० चीनी और जापानी, १०० सोमाली आदि, ४० काफिर, १,३०० केपबॉय व १२० गोरे थे। १९०६ के जनवरी महीने में डॉक्टर स्टॉकने उस बस्तीके सम्बन्ध में रिपोर्ट दी थी। उसमें उन्होंने लिखा था कि गन्दगी जमीनमें भिद कर, सम्भव है, कुएँका पानी बिगाड़ दे। गन्दा पानी निकाल देना जरूरी है। भारतीयोंमें प्लेग और चेचकके फैलने का डर है; क्योंकि ये लोग बीमारोंको छिपाते हैं। बड़े डॉक्टरने पहले लिखा है कि गरीब भारतीय हजूरिये आदि लोगोंको शहरके किनारे बाजारमें भेज दिया जाये तो अच्छा होगा। इसमें आपत्ति तो है किन्तु अब क्लिप्सप्रूट बस्ती बस गई है। इसलिए भारतीयोंको वहाँ जानेकी सुविधा कर दी जायेगी। बहुतेरे भारतीयोंका व्यापार काफिरोंसे होता है इसलिए आशा है कि भारतीय क्लिप्सप्रूट चले जायेंगे।

यह डॉक्टर पोर्टरकी रिपोर्ट है। उसमें और भी महत्त्वपूर्ण बातें हैं। लेकिन ऊपर दी गई बातें प्रत्येक भारतीयके लिए सोचने योग्य हैं। बस्तीकी बात अभी कायम है। और जबतक हममें बीमारोंको छिपाने की आदत है तथा कंजूसी या आलस्यके कारण हम सामान्य नियमोंके निर्वाहकी परवाह नहीं करते तबतक वस्तीमें भेज दिये जानेका भय दूर नहीं होगा।

एशियाई भोजनगृह

एशियाई भोजनगृहोंके लिए नियम जोहानिसबर्ग नगरपरिषदने बनाये हैं। वे कुछ ही दिनोंमें परिषदको बैठकमें पेश किये जानेवाले हैं। उन नियमोंके अनुसार परवाना शुल्क १० पौंड प्रतिवर्ष रखा जायेगा। ये नियम मुख्यतः चीनी लोगोंके लिए हैं, किन्तु एशियाइयोंमें भारतीयोंका समावेश हो जानेके कारण बहुत नुकसान हो सकता है, क्योंकि भारतीय भोजनगृहमें भोजन करनेवालोंकी संख्या बहुत ही कम है इसलिए उन्हें १० पौंडका वार्षिक शुल्क

  1. मूलमें नगरपालिका दिया गया है।
  2. मूलमें शीतला दिया गया है परन्तु यहाँ स्पष्ट ही प्लेगकी ओर संकेत है।