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३२४. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
ट्रान्सवालमें स्वराज्य

पिछले सप्ताह लॉर्ड सेल्बोर्न स्वराज्य संविधानके अनुसार पुनः ट्रान्सवालके गवर्नर नियुक्त किये गये हैं। अब भविष्यमें लेफ्टिनेंट गवर्नरका पद साफ उठा दिया गया है। जो लोग नई संसदकी सदस्यताके उम्मीदवार हैं वे ९ फरवरीको स्थानीय मजिस्ट्रेटोंके पास अपने-अपने नाम पेश करेंगे। फरवरी २० को इन उम्मीदवारोंमें से जनता सदस्योंका चुनाव करेगी।

स्वराज्य क्या है?

इस प्रसंगपर यह समझा देना अनुचित न होगा कि ट्रान्सवालमें जो परिवर्तन हुए हैं उनका क्या मतलब है। अंग्रेजी साम्राज्यमें इंग्लैंडके बाहर स्वराज्य भोगनेवाले उपनिवेश (सेल्फ गवर्निंग कालोनी) ताजके उपनिवेश (क्राउन कालोनी) और मातहत देश (डिपेन्डेन्सी)—यों तीन प्रकारके देश हैं। मातहत मुल्कोंमें भारत गिना जायेगा, ताजके उपनिवेशों में मॉरीशस, श्रीलंका आदिकी गणना होगी और स्वराज्यका उपभोग करनेवाले देशोंमें कैनेडा, नेटाल और आस्ट्रेलिया आदिका समावेश होगा।

ताजके उपनिवेशों में प्रायः जनता द्वारा निर्वाचित अथवा सरकार द्वारा नामजद धारासभा होती है। उसमें अधिकारियोंकी नियुक्ति सरकार ही करती है। उन अधिकारियोंपर धारासभाका नियन्त्रण नहीं होता। वे सभासदोंके प्रति किसी भी प्रकार जिम्मेदार नहीं होते। सारे कानून सरकार द्वारा ही बनाये गये माने जाते हैं।

ऐसी हुकूमत की जगह अधिकारियोंको नियुक्त करने का अधिकार भी जब जनताके हाथमें आता है और कर लगाना या कानून बनानेका काम भी जनताको सौंप दिया जाता है तब माना जाता है कि लोगोंको स्वराज्य प्राप्त है। स्वराज्य प्राप्त उपनिवेशोंपर इंग्लैंडका नियन्त्रण बहुत कम होता है। उनके बनाये विधानपर सम्राट्की सहीकी जरूरत तो होती है, परन्तु यदि सम्राट् सही करनेसे इनकार करें तो ऐसे राज्य एकदम स्वतन्त्र हो सकते हैं। अनेक अनुभवी राजनीतिज्ञोंकी मान्यता है कि स्वराज्यका उपभोग करनेवाले उपनिवेश कुछ ही वर्षो में अपनी ध्वजा फहराते नजर आयेंगे। ट्रान्सवाल अबतक ताजका उपनिवेश था। अब वह स्वराज्य-भोगी उपनिवेश है। उसमें निर्वाचित सदस्य अधिकारियोंको उत्तरदायी रहनेके लिए कह सकते हैं। अतः इसे उत्तरदायी शासन (रिस्पॉन्सिबल गवर्नमेंट) भी कहा जाता है।

चुनावकी धूमधाम

चुनावका संघर्ष पिछले कुछ सप्ताहोंसे चल रहा है। सभाओंमें कभी-कभी मारपीटका प्रसंग भी आ जाता है। मतदाता कभी-कभी ऐसे बेढंगे प्रश्न पूछ बैठते हैं कि इन चुनावोंको सुधार कहा जाये या जंगलीपन, यह शंका होने लगती है। श्री हॉस्केन यहाँके सुप्रसिद्ध धनिक तथा सद्गृहस्थ हैं। उनका प्रतिपक्षी उम्मीदवार उनके मुकाबलेका नहीं है। श्री हॉस्केन लोगोंका भला करनेवाले हैं या बुरा, इस प्रश्नपर निर्वाचकोंने विचार किया हो ऐसा नहीं मालूम होता। उन्होंने श्री हॉस्केनसे प्रश्न किया कि वे अपनी खानेकी चीजें कहाँसे मँगाते हैं? यदि इस प्रश्नके उत्तरपर ही श्री हॉस्केनका चुनाव निर्भर हो, तो कोई आश्चर्य नहीं।