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नेटालका परवाना-कानून

कहलायेगा। खुशामद करके यदि कोई परवाना लेता है तो वह बड़ी भूल कहलायेगी। इतना तो निश्चित रूपसे समझ लिया जाना चाहिए कि एक व्यापारीको दूसरे व्यापारीके विरोधमें खड़ा करके यदि हानि पहुँचाई जा सकती हो, तो ईर्ष्यालु गोरे उस परिस्थितिका लाभ लेनेसे नहीं चूकेंगे। ये उपाय बिगड़ती हुई स्थितिको सँभालनेके लिए हैं और बाह्य हैं।

भीतरी उपाय

अब भीतरी उपायोंपर विचार करें। इस लड़ाईमें हम स्वयं दोषी हैं या नहीं, यह पूरी तरह जान लेना चाहिए। जो मनुष्य अपने दोष नहीं देख पाता वह मरेके समान है। हमारे विरुद्ध कुछ भी कहने लायक न हो तो भी हम दुःख भोगें, यह अनुभव के विपरीत है। वैधानिक तरीकेसे लड़ाई करना हमारा कर्तव्य है, किन्तु अपने दोषोंका विचार करना भी कर्तव्य है। कानूनके सम्बन्धमें हमारे तीन निम्न दोष माने जाते हैं : (१) गन्दगी। (२) बहीखातेकी बुरी हालत। (३) घर और दुकानका साथ-साथ होना।

गन्दगी

विचार कर लेनेपर हमें तुरन्त स्वीकार करना पड़ता है कि गोरे हमें जितना गन्दा कहते हैं उतने गन्दे हम नहीं हैं, फिर भी वह आक्षेप बहुत-कुछ सही है। गन्दगीमें घरके दिखावे और अपने दिखावे दोनोंका समावेश होता है।

दूकानकी स्थिति

दूकानकी स्थिति प्रायः खराब रहती है। पीछे के हिस्से में सील अथवा कूड़ा-कचरा रहता है। दुकानके भीतर भी कभी-कभी गन्दगी होती है; और झोंपड़े जसी दूकानसे हम सन्तोष मान लेते हैं। इसमें परिवर्तन करने की बड़ी जरूरत है। हमारे देशके समान चाहे जैसी दूकान रखकर यदि हम इस देशमें व्यापार करनेकी आशा रखते हों तो उसे छोड़ देनेमें ही बुद्धिमानी होगी। अच्छे गोरे जिस ढंगसे अपनी दूकान रखते हैं यदि वैसी हम लोग न रख सकें तो इसका अर्थ यही हुआ कि हम दूकान रखनेके योग्य नहीं हैं। गोरोंकी स्वच्छ और मनोहर दूकानसे सटा हुआ हमारा झोंपड़ा दिखाई दे और उस झोंपड़े में हम गोरोंके जैसा माल बेचें तो उन्हें हमसे ईर्ष्या क्यों न हो। इसके उत्तरमें किसीको यह न कहना चाहिए कि क्या किसी गोरेकी बेढंगी दूकान नहीं होती? निःसन्देह होती है, परन्तु यदि हम उन लोगोंकी देखा-देखी करने लगेंगे तो हमें याद रखना चाहिए कि हम मात खायेंगे। इतना ही नहीं यदि हम लोगोंको कुछ अधिक भी खोना पड़े तो कोई अनहोनी बात न होगी क्योंकि हमारी राष्ट्रीयता भिन्न है।

अपना दिखावा

अपने दिखावेके बारेमें पूरी सावधानी रखना जरूरी है। फटेहाल व्यापारी नेटाल अथवा दक्षिण आफ्रिकामें कदापि नहीं टिक पायेगा। यदि कोई व्यापारी है तो उसे यहाँके रिवाजके मुताबिक कपड़े पहनने होंगे। अंग्रेजी कपड़े पहनना जरूरी नहीं है। लेकिन देशी कपड़े तो बाकायदा और साफ-सुथरे होने चाहिए। भारतीयोंको यह चेतावनी देना आवश्यक है कि इस देशमें धोती पहनना उचित नहीं है। टोंगाटमें भारतके समान ही दूकानके बाहर व्यापारियों और उनके मुनीमोंको दातुन आदि करते हुए देखा गया है। इन सब बातोंका