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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होता कि उन्हें बड़े होनेपर अपने संरक्षणके लिए या ट्रान्सवाल छोड़नेपर अनुमतिपत्र न दिया जाये। इसका उपाय अर्जी देनेके सिवा दूसरा नहीं दिखाई देता। क्योंकि कानून अनुमतिपत्र कार्यालयको अनुमतिपत्र देनेके लिए बाध्य नहीं करता, कानून तो इतना भर कहता है कि ऐसे बालकोंको अनुमतिपत्रकी आवश्यकता नहीं है, और यदि ऐसे बालकोंको कोई हैरान करे तो कानून उनकी रक्षा करेगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-१-१९०७
 

३१९. शिक्षित भारतीयोंका कर्तव्य

नेटालके शिक्षा अधिकारीकी रिपोर्टपर टीका करते हुए हमने लिखा है[१] कि शिक्षित भारतीय किस प्रकार और कैसी सरलतासे सहायता कर सकते हैं, इसपर बादमें विचार करेंगे। उसके लिए हम इस अवसरका लाभ उठाते हैं।

भारतीय समाज में बालक और प्रौढ़ दोनोंको अभी बहुत शिक्षा लेनी बाकी है। उनमें अधिकतर लोग व्यापार-रोजगारमें व्यस्त दिखाई देते हैं, इसलिए उनका दिनमें पढ़ना सम्भव नहीं होता। इसी प्रकार शिक्षित भारतीय भी अधिकतर दिनमें व्यस्त रहते हैं। दुनियामें सभी बड़े-बड़े शहरोंमें रात्रिमें अध्ययन करनेके लिए बहुत-सी पाठशालाएँ होती हैं। हम मान लेते हैं कि सच्ची शिक्षा पाये हुए अनेक भारतीय युवक स्वदेशाभिमान रखते हैं और वे चाहते हैं कि जो शिक्षा उन्होंने पाई है वहीं दूसरोंको भी दें। ऐसे व्यक्ति अपने सम्पर्क में आनेवाले बालकों अथवा प्रौढ़ोंको पढ़ानेका आग्रह कर सकते हैं। और यदि दो-चार व्यक्ति पढ़ना स्वीकार करें तो एक स्थानपर इकट्ठा होनेका निश्चय किया जा सकता है। यदि एक व्यक्ति ही पढ़ना मंजूर करे तो उसे घर जाकर भी पढ़ाया जा सकता है।

हमारी स्थिति यह है कि जिस प्रकार पढ़ानेवाले कम हैं उसी प्रकार पढ़ने-वाले भी कम हैं। इसलिए पढ़ानेकी भावनावालेके लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है कि जिसको पढ़नेकी इच्छा हो उसे पढ़ानेके लिए आतुर रहे, बल्कि यह भी आवश्यक है कि वह जिसके सम्पर्क में आये उसे पढ़नेकी ओर आकर्षित करे।

हम अच्छी तरह समझते हैं कि कुछ लोगोंके मनमें विचार आयेगा कि उपर्युक्त पंक्तियाँ कागजपर तो शोभा दे सकती हैं, परन्तु उनके अनुसार चलना मामूली बात नहीं है। उसके जवाबमें हमें इतना ही कहना है कि यह लेख उन सूरमाओंके लिए है जिनके मनमें देशाभिमान सुलग रहा है; और जो लिखा गया है वह अनुभव सिद्ध है, इसलिए अव्यावहारिक कहकर खारिज कर देने योग्य नहीं है।

[गुजराती से]
इंडियन ओपिनियन, १९-१-१९०७
  1. देखिए "शिक्षा अधीक्षककी रिपोर्ट", पृष्ठ २८३-८४।