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भाषण : पूर्वं भारत संघमें

चुके हैं। सर मंचरजीने बहुत कृपापूर्वक इस पदके लिए अपनी मँजूरी दे दी है, बशर्तें कि उपसमितिके अन्य सदस्योंकी भी स्वीकृति हो

समितिकी अध्यक्षताके लिए लॉर्ड रेसे प्रार्थना की गई है और यदि लॉर्ड महोदय के लिए यह पद स्वीकार करना जरा भी सम्भव हुआ, तो वे इसे स्वीकार करेंगे।

आपका विश्वस्त,
मो॰ क॰ गांधी

संलग्न :

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस॰ एन॰ ४६५४) से।

 

२५८. भाषण : पूर्व भारत संघमें

लन्दन के कैक्सटन हॉलमें आयोजित पूर्व भारत संघकी एक बैठकमें श्री एल॰ डब्ल्यू॰ रिचने "दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीयका भार"[१] शीर्षकसे एक निबन्ध पढ़ा। तदनन्तर जो बहस हुई उसका श्रीगणेश गांधीजीने किया।

नवम्बर २६, १९०६

. . . .श्री गांधीने कहा कि वक्ताने जो कुछ कहा है उसके बाद जो कार्य उन्हें सौंपा गया है उसके उद्देश्यके बारेमें आगे कुछ कहना अनावश्यक है; परन्तु भारतीय पक्षको दक्षिण आफ्रिकामें जो समर्थन मिला है उसके लिए यदि उन्होंने पूर्व भारत संघ और उसके मन्त्री, श्री सी॰ डब्ल्यू॰ अरथूनके प्रति अपना गहरा आभार प्रकट करनेका अवसर खो दिया तो वह उनकी कृतघ्नता होगी। एक बात है जो सबको ध्यानमें रखना चाहिए; अर्थात्, दक्षिण आफ्रिका और खास तौरसे ट्रान्सवालमें वे जो कुछ कठिनाइयाँ झेल रहे हैं, उन्हें वे अंग्रेज जनताके नामपर झेल रहे हैं। जिस अध्यादेशके कारण उन्हें इंग्लैंड आना पड़ा है वह बादशाहके नामपर लागू किया गया है।

औपनिवेशिक इतिहासमें प्रथम बार एक शाही उपनिवेश द्वारा ऐसा विधान बनानेका दृष्टान्त उपस्थित किया गया है जिसमें एक वर्गके लोगोंको केवल इसलिए छाप लगाकर अलग कर दिया है कि उनकी चमड़ी रंगदार है। भारतको साम्राज्यमें बनाये रखना है या उसे केवल औपनिवेशिक भावनाओंका खयाल रखनेके लिए खो देना है? गोरी आबादीकी तुलना में भारतीय आबादीका अनुपात क्या है?

श्री रिचका कहना है कि ट्रान्सवालमें एशियाई वैसे ही हैं जैसे सागरमें एक बूंद २,८५,००० गोरोंके मुकाबले, मात्र १३,०००। उस उपनिवेशमें वे केवल शान्ति, संतोष और आत्म-सम्मानके लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनमें से लगभग सभी युद्धसे पहले उपनिवेशमें आये थे। आज वे केवल नागरिक अधिकारोंकी माँग कर रहे हैं, जो कि ब्रिटिश ताजकी छायामें प्रजाके रूपमें रहनेवाले प्रत्येक व्यक्तिको मिलने चाहिये। फिर भी इस अध्यादेशके अन्तर्गत

 
  1. विवरणके लिए देखिए "पूर्व भारत संघ में श्री रिचका भाषण", पृष्ठ २७२-७३।