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पत्र : लॉर्ड एलगिनके निजी सचिवको

वह संघकी एक सभा में किया गया था, जिसमें बहुत लोग आये थे। संघको कोई विरोधपत्र नहीं भेजा गया, यद्यपि चुनाव जनताके सामने बहुत समय तक होता रहा।

६. जहाँतक मुद्दा (ख) का सम्बन्ध है, अपने तेरह वर्षके कार्यकालमें श्री गांधीने अपनी सार्वजनिक सेवाके लिए कोई पारिश्रमिक नहीं लिया है। उन्होंने समय-समयपर संघ के कोष में चंदा दिया है। उन्होंने यह काम विशुद्ध सेवा-भावसे किया है। जोहानिसबर्ग के 'स्टार' ने २३ अक्तूबरको एक वक्तव्य प्रकाशित किया था, जो कुछ-कुछ ऐसा ही था। लॉर्ड महोदयसे प्रार्थना है कि उसके खण्डनमें उक्त पत्रमें ही २५ अक्तूबरको प्रकाशित पत्र- व्यवहारपर ध्यान देनेकी कृपा करेंगे।

७. मुद्दा (ग) के सम्बन्धमें, श्री गांधीको ऐसे किसी मन-मुटावका कतई पता नहीं है जो उनकी पैरोकारीके कारण यूरोपीयों और भारतीयोंमें पैदा हुआ हो। इसके विपरीत, वे दोनों समाजों में समझौता कराने का अधिकतम प्रयत्न करते रहे हैं। नेटाल भारतीय कांग्रेसका, जिसके वे अवैतनिक मन्त्री और एक संस्थापक थे, [और] ब्रिटिश भारतीय संघका, जिसके वे मौजूदा मन्त्री हैं, माना हुआ उद्देश्य भी यही है। इस मुद्देके सम्बन्धमें हम लॉर्ड महोदय का ध्यान स्वर्गीय सर जॉन रॉबिन्सनके निम्नलिखित पत्र की ओर दिलाते हैं। यह पत्र विशेष प्रतिष्ठित नागरिकोंके उन अनेक पत्रोंमें से एक है, जो उन्होंने सन् १९०१ में श्री गांधी भारत जाते समय उन्हें लिखे थे :

आज (१५ अक्तूबर, १९०१) शामको आपने मुझे कांग्रेस भवनको सभामें आनेका कृपापूर्ण निमन्त्रण दिया, इसके लिए में आपको धन्यवाद देता हूँ। अपने सुयोग्य और विशिष्ट सह-नागरिक श्री गांधीके सम्मानके, जिसका उन्होंने भली भाँति अधिकार प्राप्त किया है, अवसरपर उपस्थित होने में मुझे प्रसन्नता होती; किन्तु दुर्भाग्यसे मेरे स्वास्थ्यकी हालत रातको बाहर जानेमें मेरे आड़े आती है और फिलहाल मेरे लिए किसी भी सार्वजनिक समारोहमें भाग लेनेकी मनाही है। इसलिए कृपया मुझे उपस्थित होनेकी असमर्थताके लिए क्षमा करेंगे।
मैं कामना करता हूँ—और कम हार्दिकतासे नहीं—कि श्री गांधीके द्वारा किये गये अच्छे कामको और समाजके लिए की गई उनकी अनेक सेवाओंकी सार्वजनिक सराहनाका यह समारोह पूरी तरहसे सफल हो।[१]

उन्होंने बोअर युद्धके[२] समय भारतीय आहत-सहायक दल संगठित किया और वतनी विद्रोहके समय भारतीय डोलीवाहक-दल बनाया। इसका मुख्य कारण यह दिखाकर परस्पर मेल-जोल कराना ही था कि ब्रिटिश भारतीय साम्राज्यकी नागरिकताके अयोग्य नहीं हैं और यदि वे अपने अधिकारोंका आग्रह रखते हैं तो अपने कर्त्तव्योंको स्वीकार करने में भी समर्थ हैं।

८. मुद्दा (घ) के सम्बन्धमें, यह सत्य है कि १३ जनवरी १८९७ को भारत से लौटनेपर श्री गांधीपर भीड़ ने हमला किया था, क्योंकि भारतमें नेटालके भारतीयों के मामले में उनकी पैरोकारीके बारेमें गलतबयानी की गई थी। १४ जनवरीको उनसे सार्वजनिक क्षमायाचना की गई और जब समस्त स्थिति मालूम हो गई तब स्वर्गीय श्री एस्कम्बने उनको मिलने के लिए बुलाया और उस समयसे उनको स्वर्गीय एस्कम्बकी मैत्रीका विशेष लाभ प्राप्त रहा।

  1. खण्ड ३, पृष्ठ १७१ भी देखिए।
  2. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ १३८ और १४७-१५२।
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