१९३. पत्र: बर्नार्ड हॉलैंडको
[होटल सेसिल
लन्दन]
नवम्बर १६, १९०६
मैं आपके इसी १५ तारीखके पत्रके लिए आभारी हूँ।
यदि शिष्टमण्डलकी भेंटका विवरण बिना कुछ छोड़े पूराका पूरा प्रकाशित हो, तो लॉर्ड एलगिनको उसके अखबारोंमें दिये जानेपर कोई आपत्ति नहीं है, यह बात मैंने नोट कर ली है। इसलिए मैं 'इंडियन ओपिनियन' के सम्पादकको पूराका-पूरा छापनेकी हिदायत के साथ, विवरण[१] भेजनेकी स्वतन्त्रता ले रहा हूँ।
आपका विश्वस्त,
उपनिवेश कार्यालय
डाउनिंग स्ट्रीट
टाइपकी हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ४५८३) से।
१९४. भेंट: 'साउथ आफ्रिका' को[२]
[नवम्बर १६, १९०६]
डॉ० गॉडफ्रे और सी० एम० पिल्लेने अपने हस्ताक्षरोंके साथ प्रत्यक्षत: ४३७ अन्य ब्रिटिश भारतीयोंकी ओरसे एक प्रार्थनापत्र भेजा था। इन भारतीयोंने इस बात से इनकार किया था कि उन्होंने गांधीजीको अपना प्रतिनिधित्व करनेके लिए विलायत भेजा है, (गत सप्ताह इस विषयपर सर हेनरी कॉटनने संसदमें सवाल किया था)। गांधीजीने साउथ अफ्रिकाके पत्र-प्रतिनिधिसे कहा है कि जोहानिसबर्गसे एक तार आया है जिसमें बताया गया है कि डॉ० गॉडफेने ब्रिटिश भारतीय संघके नामका उपयोग करके उक्त ४३७ भारतीयोंसे फोरे कागजपर हस्ताक्षर लिये थे।
गांधीजीने कहा:
जहाँतक स्वयं अध्यादेशकी स्थितिका सम्बन्ध है, उसपर इस प्रार्थनापत्रका, जिसपर केवल डॉक्टर गॉडफ्रे और सी० एम० पिल्ले नामक एक दुभाषियेके हस्ताक्षर हैं, कोई प्रभाव नहीं पड़ता; क्योंकि गत सितम्बर महीने में पुराने एम्पायर नाटकघरमें जो विशाल सार्वजनिक सभा हुई थी उसमें डॉ० गॉडफ्रे इस अध्यादेशके सबसे प्रबल विरोधी थे। उसी सभामें यह तय