१५३. पत्र: उमर एच० ए० जौहरीको
हो [टल] से [सिल]
लं [दन]
नवम्बर १०, १९०६
मेरे पास आपको गुजरातीमें लिखने के लिए समय नहीं है। मैं यह पत्र ९-४५ बजे रातको लिखा रहा हूँ। नेटालके मामले में मैंने यथाशक्ति सब कुछ किया है। मैंने लॉर्ड एलगिनसे भेंट करनेकी प्रार्थना की थी। बुधवारको मुझे उत्तर मिला, जिसमें कहा गया था कि मुझे जो कुछ कहना हो वह सब मैं लिखकर दे दूँ । मैंने उसी दिन उत्तर भेज दिया था, जिसमें मैंने थोड़ेमें अपना तर्क दे दिया था और एक व्यक्तिगत अनौपचारिक भेंटकी प्रार्थना की थी[१]। आज मुझे पुन: इस आशयका पत्र मिला है कि आगामी सप्ताह में मेरे पास उत्तर भेजा जायेगा । मैं आपके पास 'साउथ आफ्रिका' की एक प्रति भी भेज रहा हूँ। इसमें उनसे भेंटका एक विवरण छपा है। इस समय मैं इससे आगे नहीं जा सकता। मैं अपना ध्यान ट्रान्सवालके प्रश्नपर लगा रहा हूँ और उसमें बहुत ही व्यस्त हूँ। परन्तु मैंने एक समुद्री तार भेजा है। उसमें मैंने सुझाया है कि यहाँ एक स्थायी समिति होनी चाहिए; क्योंकि मैं समझता हूँ कि ऐसी समितिसे बहुत कुछ किया जा सकता है। परन्तु उसे दक्षिण आफ्रिकाकी समिति होना चाहिए, न कि ट्रान्सवालकी। मेरा खयाल है कि सावधानीके साथ व्यवस्था की गई तो यह अत्यन्त कारगर संस्था हो सकती है।
मैंने कल एक दूसरा तार[२] भेजा है। उसमें तत्काल अधिकार माँगा है, क्योंकि जबतक मैं और श्री अली यहाँ हैं, यह समिति बन जानी चाहिए। आशा है कि कल मुझे कुछ उत्तर मिलेगा।
आपका हृदयसे,
टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ४५३९) से।